Friday, November 15, 2019

JNU Students Protest

JNU Students Protest


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आसान शब्दों में मैंने JNU (Jawaharlal Nehru University) Students के विरोध प्रदर्शन के कारण को समझा और उसी आसान भाषा में, मैं आपको भी समझाने की कोशिश करूंगा अपने इस ब्लॉग के माध्य्म से।

JNU यानी जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय जो दिल्ली में स्तिथ है वह भारत का एक प्रसिद्धि विश्वविद्यालय है, जिसका निर्माण सन 1969 में हुआ था। यह एक सरकारी यूनिवर्सिटी है जिस तरह सरकारी स्कूल होते हैं छोटे बच्चों के लिए, जो हर शहर या गांव में होते हैं। जहां ग़रीब तबक़े यानी उन परिवारों के बच्चे शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं जिन परिवारों की आय बहुत ही न्यूनतम होती है। परिवारों की माली हालत गंभीर होने के कारण, बच्चों को मिड डे मील (Mid Day Meal) भी दिया जाता है, ताक़ि बच्चे कुपोषण का शिकार ना हो जाएं। क्योंकि कुपोषण की वज़ह से किसी भी उम्र का व्यक्ति बेहद बुरी तरह से बीमार हो सकता है, यहां तक की उसकी जान भी जा सकती है। काफ़ी सारे मामले ऐसे भी आए हैं, जिसमें मिड डे मील दूषित भी पाया गया और पर्याप्त भी नहीं पाया गया जिससे बच्चे बीमारियों का भी शिकार हुए और कमज़ोरी का भी। (आपको बता दें कि छोटे बच्चों के लिए सरकार की ओर से खोले गए यह स्कूल लगभग बिना फ़ीस के बच्चों को शिक्षा प्राप्त कराने के लिए खोले गए हैं, लेकिन इन स्कूलों में प्राप्त हुई जानकारियों के अनुसार बच्चे कोई भी शिक्षा बच्चे प्राप्त नहीं कर पाते!)

लेक़िन JNU में छात्रों को फ़ीस देनी पड़ती है और अभी हाल में ही अचानक फ़ीस में छात्रों के अनुसार बेहिसाब बढ़ोतरी कर दी गई, जिसके चलते छात्रों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया उसके विरोध में, वो सुनने में आपके भी आया होगा। जिसपर सियासी घमासान फ़िलहाल अभी न्यूज़ चैनलों पर जारी है, जिसमें किसी चैनल या न्यूज़ ऐजेंसी का कुछ कहना है तो किसी का कुछ। यानी एक न्यूज़ चैनल छात्रों के प्रदर्शन पर सिर्फ़ रिपोर्टिंग कर रहा है तो वहीं दूसरी ओर, दूसरा न्यूज़ चैनल छात्र और छात्रों के विरोध प्रदर्शन को पूरी तरह ग़लत ठहरा रहा है। कुछ न्यूज़ चैनलों पर यह भी कहा जा रहा है कि छात्र दुर्व्यवहार कर रहे हैं लोगों व पुलिसकर्मियों से।

यह तो सब थी बात जो स्टूडियो में बैठकर न्यूज़ एंकरों ने कही और आपको व मुझे पता चली। लेक़िन इस पूरे विवाद में ख़ुद छात्रों का क्या कहना है उसे समझना जरूरी है। काफ़ी छात्रों को यह कहते हुए सुना गया कि उनके "परिवार की माली हालत बहोत ही कमज़ोर है और इसी वज़ह से हम, JNU की कम फ़ीस के कारण यहां पढ़ पा रहे हैं। अब अगर फ़ीस को बेहिसाब या बढ़ा दिया जाएगा तो हम क्या करेंगे? हमारे परिवार की आय इतनी नहीं कि हम JNU द्वारा बढ़ाई गई फ़ीस को भर सकें। इसी वज़ह से हम अपना विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।" इस विरोध प्रदर्शन के चलते पुलिस ने छात्रों पर बुरी तरह लाठी चार्ज भी किया, जिसकी रिपोर्टिंग काफ़ी चैंनलों ने नहीं की।


कितनी सही है छात्रों की यह बात और उनका विरोध प्रदर्शन, आईये समझने की कोशिश करते हैं।



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असल में जो छात्र विरोध कर रहे हैं, उनके परिवार की माली हालत का आंकलन ख़ुद सरकार और यूनिवर्सिटी भी कर सकती है, जिसके काफ़ी तरीक़े हैं। लेक़िन मौजूदा सरकार इसपर चुप्पी साधे हुए है और यूनिवर्सिटी के वाईस चांसलर भी छात्रों से मुलाक़ात नहीं कर रहे। क्योंकि सच यह है कि यह छात्र जिन परिवारों से आते हैं उस परिवार का मुखिया या उस परिवार के कमाने वाले लोग या तो ग़रीब किसान हैं या फ़िर ऐसे लोग जो मज़दूर तबक़े के हैं। जिनकी वार्षिक आय इतनी भी नहीं कि वह सरकार को उसमें से टैक्स दे सकें, जिससे कि सरकार उस पैसे को भारत में किसी ऐसे काम में लगा सके, जिसका इस्तेमाल अमीर और ग़रीब दोनों कर पाएं।

लेक़िन क्या यह कहना ठीक होगा या इस बात का ताना मारना ठीक होगा, किसी भी ऐसे व्यक्ति के लिए को जो सरकार को टैक्स अपनी वार्षिक आय में से देने में समर्थ नहीं है, "कि तुम हमारे टैक्स के पैसे से नहीं पढ़ सकते या अमीर के टैक्स के पैसे पर ग़रीब का कोई हक़ नहीं?" तो इसपर मेरा एक छोटा सा सवाल है, कि फ़िर किसके लिए है टैक्स का पैसा? आप कहेंगे कि "टैक्स का पैसा सड़कों व इसी तरह की चीज़ों के इस्तेमाल के लिए है जिससे भारत निर्माण हो, किसी ग़रीब के लिए नहीं। ग़रीब हो तो हम क्या करें?"


अब यहां कुछ बातें समझने वाली है। 

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सबसे पहली बात यह कि JNU की फ़ीस इतनी कम क्यों है, यह समझिए पहले। JNU की फ़ीस इतनी कम इसलिए है क्योंकि वह एक सरकारी संस्थान/विश्वविद्यालय है और इसलिए खोला गया ताक़ि वहां ग़रीबों को शिक्षा प्राप्त हो सके। यहां ज़्यादातर तादात उन बच्चों की ज़्यादा है जिनके परिवार खेती - किसानी व दिहाड़ी मज़दूरी से अपनी जीविका चलाते हैं। इसी वज़ह से इन छात्रों के लिए JNU जैसी यूनिवर्सिटी उपयुक्त हैं शिक्षा प्राप्त करने के लिए। यह बात ठीक है कि वह या उनके परिवारजन सरकार को टैक्स नहीं दे पाते, लेक़िन यह बात उन लोगों की बिल्कुल ग़लत है जो इस बात को कह रहे हैं कि हमारे टैक्स के पैसे से आप शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकते! क्योंकि सरकार इन्हें बिल्कुल फ़्री शिक्षा JNU में नहीं दे रही, उनसे फ़ीस ली जाती है!

दूसरी बात यह कि इन बच्चों के परिजनों में से कोई किसान है तो कोई दिहाड़ी मज़दूर। किसान और एक दिहाड़ी मज़दूर की कितनी अहम भूमिका होती है देश निर्माण में उसका आंकलन करना भी पाप होगा। किसान से ही पूरा देश आबाद है और कैसे है, इसपर आप ख़ुद गंभीरता से विचार करना। उसके बाद भी आज किसान की बड़ी ही दयनीय हालत है, जिसके चलते देश भर में यही किसान हर साल हजारों की संख्या में आत्महत्या करने पर मज़बूर हैं। जिसपर देश के भृष्ट नेता और न्यूज़ चैनल कुछ नहीं बोलते। यह लोग आपको अन्न देते हैं खाने के लिए और ख़ुद बदहाली के कारण आत्महत्या कर लेते हैं। इन्हीं किसानों व दिहाड़ी मज़दूरों के बच्चे JNU और ऐसे ही स्कूलों में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। "फ़िर भी आज लोग इन बच्चों को ताना मार रहे हैं। जबकि यह बहोत शर्म की बात है!"

तीसरी बात अहँकार में डूबे हुए शायद वो टैक्स पेयर नहीं जानते, कि भले ही यह लोग टैक्स ना दे रहे हों और नाहीं इनके परिजन, अर्थिक तंगी की वज़ह से। लेक़िन उसके बदले इनके परिजन सरकार की ग़लत नीतियों के कारण देशभर में आत्महत्या कर रहे हैं। इसके साथ ही बहोत से छात्र अर्थिक रूप से कमज़ोर होने के चलते, अपनी शिक्षा बीच में छोड़ देते हैं और परिवार के भरण पोषण के लिए छोटी मोटी नौकरी कर लेते हैं। वहीं दूसरी ओर जिनके परिवार के बच्चे आर्थिक रूप से मज़बूत होते हैं, उनको किसी अच्छी कंपनी में नौकरी भी मिल जाती है और अच्छी तनख्वाह (Salary) भी। जिसका ज़िक्र ना तो सरकार करती है और नाहीं यूनिवर्सिटी का संचालक दल। कभी कोई रिपोर्ट यूनिवर्सिटी के माध्य्म से सामने नहीं आई, जिसमें लिखा हो या जिससे पता चलता हो कि आर्थिक तंगी की वज़ह से इतने छात्र यूनिवर्सिटी छोड़कर बीच में ही चले गए! जो की बहोत ही "शर्मनाक" वज़ह है समाज, सरकार और शिक्षा संस्थानों व JNU जैसे विश्वविध्लयों के लिए!

चौथी बात सबसे ज़्यादा शर्मनाक है, कि कुछ लोग बिना सोचे समझे या अपने निजी स्वार्थ के चलते इन छात्रों की सही बात होने के बावजूद इनकी आलोचना सोशल मीडिया के माध्य्म कर रहे हैं। जिसकी वज़ह से सरकार और यूनिवर्सिटी संचालकों का असली चेहरा दुनिया के सामने नहीं आ पाता। बाक़ी की कसर पूरी कर देते हैं भारत के न्यूज़ चैनल्स!!!

पांचवी बात, अब अगर यह ग़रीब छात्र JNU में या ऐसे ही भारत के किसी विश्विद्यालय में पढ़ना चाहते हैं जिनके परिजन इतनी कुर्बानी दे रहे हों देश के लोगों के लिए और उनके साथ हो रही नाइंसाफी पर उनका कोई साथ नहीं दे रहा हो, उसकी बजाए उनकी आलोचना कर रहा हो और उनका वाईस चांसलर भी उनसे ना मिल रहा हो, जिस वज़ह से उनको विरोध करना पड़ रहा हो और साथ ही बेहिसाब पीटना पड़ रहा हो पुलिस वालों से अपनी जायज़ मांगों के चलते, तो भी क्या JNU के छात्र ही ग़लत हैं?

छठी और आख़री बात यह, कि आर्थिक समस्याओं का शिकार कोई भी और कभी भी हो सकता है। इसलिए हमें कुछ भी बिना सोचे समझे नहीं कहना और करना चाहिए, जिससे किसी की पूरी ज़िंदगी बर्बाद हो जाये। क्योंकि सबको हक़ है अच्छी शिक्षा और अच्छी ज़िन्दगी जीने का! अगर हमारा समाज पढ़ा लिखा नहीं होगा तो देश विकास कैसे करेगा। देश की हालत पहले से ही बहोत ख़राब है, जिसे झुठलाया नहीं जा सकता!


आपको और देश के लोगों को मूर्ख बनाते कुछ न्यूज़ चैनल और सोशल मीडिया के लोग। 

बढ़ी हुई फ़ीस को लेकर JNU का विरोध प्रदर्शन october 2019 से जारी है फ़िलहाल आज 15-11-2019 तक और अभी कितने समय तक यह जारी रहेगा, इसपर कुछ भी कहना मुश्किल है। लेक़िन दिनांक 13-11-2019 यानी परसों अचानक बेहद बढ़ी हुई फ़ीस के सिलसिले में एक ख़बर सामने आई। जिसमें कहा गया कि जो फैंसला बढ़ी हुई फ़ीस को लेकर लिया गया था, उस फैंसले को वापस लिया जा रहा है और फ़ीस को उतना नहीं बढ़ाया जा रहा जिससे छात्रों को दिक़्क़त हो। मगर बात समझ नहीं आ रही थी क्योंकि न्यूज़ चैनल घुमा फिरा कर न्यूज़ दे रहे थे। साथ ही बहुत ज़ोर देकर कह रहे थे कि फ़ीस में बहुत भारी कटौती कर दी गई है दुबारा।

लेक़िन धीरे - धीरे यह सारी बात उस वक़्त साफ़ हो गई, जब प्रदर्शन कर रहे छात्रों ने ख़ुद अपने बयान दिए न्यूज़ चैनलों के माध्य्म से। उन्होंने बताया कि न्यूज़ चैनल्स और सोशल मीडिया पर लोग देश के लोगों को ग़ुमराह कर रहे हैं, फ़ीस में जो लंबी चौड़ी कटौती की बात देश के कुछ न्यूज़ चैनल कर रहे हैं वह सरासर ग़लत है और झूठी है। फ़ीस में भारी बढ़ोतरी की गई और बहुत ही मामूली कटौती, उसी बढ़ी हुई फ़ीस में करके दिखाया जा रहा है!!!

इसके बाद अचानक एक घटना और हुई। असल में ABVP (Akhil Bhartiya Vidhyarti Parishad) Union, जो भारतीय जनता पार्टी का समर्थन करती है (ऐसा कई ख़बरों में सुना गया है) और RSS यानी संघ परिवार की सदस्य है, उसने बढ़ी हुई इस फ़ीस का विरोध किया। यह बात परसों यानी 13-11-2019 की है। जैसे ही ABVP ने विरोध प्रदर्शन किया उसकी ख़बर सभी न्यूज़ चैनलों के माध्य्म से पता चलनी शुरू हो गयी। ABVP के इस प्रदर्शन को अभी सिर्फ़ दो घंटे ही हुए थे और अचानक वो ख़बर सामने आई, जिसका ज़िक्र अभी मैंने आपसे ऊपर किया। कि भारी बढ़ी हुई फ़ीस को वापस ले लिया गया है!


अब यह क्यों हुआ इसे भी समझने की ज़रूरत है। 


दरसल अभी केंद्र सरकार यानी भाजपा ने महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ हाथ मिलाकर चुनाव लड़ा और कांग्रेस से कड़ी टक्कर नहीं, बल्कि अपनी गलत नीतियों के चलते मुश्किल से जैसे - तैसे आख़िर जीत ही गयी। जिसका सबूत था कि जीत का कोई बड़ा हल्ला पार्टी नहीं कर पाई! लेक़िन भाजपा की जीतने के बाद भी इतनी बेइज़्ज़ती हो रही है इस दौरान, जितनी किसी पार्टी की हारने के बाद भी नहीं होती। 

क्योंकि जीतने के बाद दोनों पार्टियों में काफ़ी कहा सुनी हो गई, इस बात को लेकर कि महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री किसका होगा। भाजपा कह रही है कि हमारा नेता होगा यानी Devendra Fadnavis और शिवसेना कह रही है कि हमारा होगा यानी Aditya Thackeray! इसको लेकर काफ़ी किरकिरी भाजपा की हो रही है भारत में। भाजपा को नहीं पता शायद कि कैसे Damage Control किया जाए।

अब दिल्ली में भाजपा का समर्थन करने वाली छात्र यूनियन ABVP भी विरोध प्रदर्शन कर रही है और देश की जनता की नज़रों में जाने अनजाने पार्टी की और छवि ख़राब ना हो जाये, इसलिए लगता है कि तुरंत यह फ़ीस कटौती की बात सामने आई। हालांकि फ़ीस पूरी तरह से उसी पैटर्न पर वापस नहीं ली गई है, लेक़िन लगता है अचानक पूरी तरह से फ़ीस उसी पैटर्न में लाने से JNU और केंद्र सरकार भाजपा की बात ख़राब हो सकती है। इसलिए शायद फ़ीस उसी ढर्रे पर कुछ अंतराल के बाद आ जाये।

(आख़िर में यही कहूंगा कि छात्र JNU का हो या कहीं का भी, उसके ऊपर लाठीचार्ज करना ग़लत है। छात्र विरोध प्रदर्शन कर रहे थे, ग़लत बात का विरोध कर रहे थे ना की किसी को मार रहे थे। और एक बात हमेशा याद रखिएगा, कि यह लोग फ़्री में नहीं पढ़ रहे और जो क़ीमत यह छात्र और इनके परिवार चुका रहे हैं उसकी कल्पना भी करना मुश्किल है। यह बात मैं पहले भी कर चुका हूं।)

(JNU के छात्र प्रदर्शन करने सड़कों पर तब आये, जब लगातार उनके यानी छात्रों के आग्रह करने के बाद भी उनकी परेशानियों को सुनने व समझने के लिए JNU के Vice Chancellor उनसे नहीं मिले।)

(विरोध प्रदर्शन के दौरान जो नए आरोप उनके ऊपर 13-11-2019 से मढ़े जा रहे हैं कि उन्होंने स्वामी विवेकानंद जी की प्रतिमा के ऊपर कुछ लिख दिया है या उससे छेड़छाड़ की है और यूनिवर्सिटी परिसर में या कहीं भी। तो उसपर छात्रों ने पहले ही साफ़ तौर पर कह दिया है कि उन्होंने नारे लिखें हैं जो उनकी मांगों को दर्शाते हैं लेक़िन स्वामी विवेकानंद जी की प्रतिमा पर नहीं। क्योंकि आपको बता दें कि इससे पहले भी JNU के स्टूडेंट्स को एक Edited वीडियो के आधार पर बदनाम किया गया था।)

(भाजपा व देश के कुछ न्यूज़ चैनलों को पता नहीं क्यों इतनी दिक़्क़त है JNU के छात्रों से समझ नहीं आता। जबकि भाजपा को शर्मिंदगी होनी चाहिए कि जो उन्होंने दो करोड़ रोज़गार हर वर्ष देने की बात कही थी, वो तो दे नहीं पाई, उल्टा उनकी शिक्षा के पीछे पड़ी हुई है। JNU क्यों राजनीति में घसीटा जा रहा है यह तो मैं साफ़ तौर पर नहीं कह सकता, लेक़िन यह ज़रूर कह सकता हूं कि भारत में मौजूदा हालात को देखते हुए बेरोज़गार और युवाओं के लिए ज़िन्दगी की राह बेहद कठिन है!)

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