Tuesday, November 12, 2019

Ayodhya विवाद, ख़त्म या शुरू?

Ayodhya विवाद, ख़त्म या शुरू? 

Embed from Getty Images (क्योंकि यह एक बहुत ही संवेदनशील मामला है, इसलिए मैं अपनी "निजी" राय रखने से पहले "भारत की माननीय उच्चतम न्यायालय व सभी आदरणीय जजों" के समक्ष एक निवेदन करना चाहता हूं। कि जो भी मैं आगे अपने ब्लॉग में लिख़ने जा रहा हूं, वो सिर्फ़ मेरी अपनी निजी राय है। इसलिए अगर मुझसे किसी प्रकार की त्रुटि हो जाए तो मुझे कृप्या माफ़ करने की कृपा करें। धन्यवाद।)

इसी के साथ अब मैं अपनी बात आपके सामने रख़ता हूं। (मैं लंबी चौड़ी डिटेल में अपनी बात नहीं रखूँगा, बस जो मेरे दिल में है। उसे आपके सामने रखूँगा।)

माननीय न्यायालय ने तारीख़ 09 नवंबर 2019 को सुबह के वक़्त एक बहोत बड़ा फैंसला सुनाया। जो अयोध्या के विषय में था। उसमें विवादित जगह हिन्दू समुदाय के लोगों को दे दी गई और अयोध्या में ही कहीं और 5 एकड़ जमीन दूसरे समुदाय यानी मुसलमानों को दे दी गई। जिसपर राजनीति बड़े लंबे समय से चली आ रही थी और अब फैंसला आने के बाद भी थमती हुई नहीं दिख रही। 



असल में, जिस दिन फैंसला आया उसी दिन सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के वक़ील "Zafaryab Jilani" ने पत्रकारों से एक छोटी सी भेंटवार्ता की। जिसमें उन्होंने कहा, कि हम सुप्रीम कोर्ट का और उसके हर फैंसले का सम्मान करते हैं। लेक़िन हम इस फैंसले से संतुष्ट नहीं हैं! लेक़िन "Personally" मुझे "Zafaryab Jilani"  साब की यह बात ठीक नहीं लगी। हालांकि हर आदमी को स्वतंत्रता है अपनी बात व राय रखने की, लेक़िन यहां जिलानी साब की यह बात मन में शंका पैदा करती है।

क्योंकि वे दो बातें कर रहे हैं! पहली यह, कि जिलानी साब कह रहे हैं कि वे सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करते हैं और दूसरी यह कि वह फैंसले से नाख़ुश हैं। और यह दो अलग - अलग बातें हैं। जब आप कोर्ट का सम्मान करते हैं तो उसके फैंसले का भी सम्मान करना चाहिए और संतुष्ट भी होना चाहिए। अगर हम फैंसले से ही संतुष्ट नहीं हैं, तो हम कैसे कह सकते हैं कि हम कोर्ट का सम्मान करते हैं! यानी कि यह सिर्फ़ कहने के लिए है, कि हम कोर्ट का सम्मान करते हैं। (क्योंकि सुप्रीम कोर्ट कोई व्यक्ति विशेष नहीं है, जिसका आप सम्मान तो करते हों लेक़िन उसके किसी एक फैंसले से संतुष्ट ना हों। इसके अलावा भारत में सर्वोच्च न्यायालय का फैंसला ही अपने आप में एक पूर्ण विराम है, जिसके आगे और कुछ नहीं! इसलिए हमें न्यायालय का पूरा सम्मान करते हुए उसके फैंसले को भी मानना चाहिए।)

एक बात और भी फैंसला आने से पहले लगातार सुनी जा रही थी दोनों पक्षों (यानी हिन्दू और मुसलमानों) की ओर से कि फैंसला जो भी आए, जिसके भी पक्ष में आए, उसे सब पूरी इज़्ज़त के साथ क़बूल करेंगे। लेक़िन यहां तस्वीर कुछ और ही बनी हुई है। जिलानी साब सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड यानी मुस्लिम समुदाय के पक्ष में कोर्ट में पैरवी कर रहे थे और अगर जिलानी साब ही यह कहेंगे, कि वह संतुष्ट नहीं हैं तो मुसलमानों पर भी इसका असर ग़लत पड़ेगा!


इसके बाद एक और बयान आया "Asaduddin Owaisi" साब का। उन्होंने भी कुछ इसी तरह की बात की। उनका कहना है कि "मैं भी सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करता हूं, लेक़िन इस फैंसले में कोर्ट ने जो 5 एकड़ जमीन देने की बात की है। उसकी हमें ज़रूरत नहीं है।"



इसके बाद बयान आया, "UP Sunni Central Waqf Board" के चेयरमैन श्री "Zufar Faruqi" का। जिसमें उन्होंने कहा, कि "हम कोर्ट के फैंसले का पूरा सम्मान करते हैं और हम किसी भी प्रकार की बात इस फैंसले को लेकर कोर्ट से नहीं करेंगे। हम इस फैंसले का स्वागत करते हैं और इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा, कि जो भी मुस्लिम समुदाय का व्यक्ति कोर्ट के फैंसले से असंतुष्ट है या जो भी कह रहा है। वह उसकी अपनी निजी राय है, उससे हमारा कोई लेना देना नहीं।" यह बात उन्होंने Zafaryab Jilani और Asaduddin Owaisi के बयान पर कही।

उन्होंने यह बात भी कही, कि "हम ख़ुद मुस्लिम समुदाय का नेतृत्व करते हैं और हमारे लोग हमसे जुड़े हुए हैं यानी मुस्लिम समुदाय के लोग। हम सभी कोर्ट के फैंसले का सम्मान करते हैं और जो भी फैंसला आया है वह हम सब को मंज़ूर है।" Zufar Faruqi साब की इस बात से लगा, कि चलिए दोनों पक्षों के लोगों में अब इस बात को लेकर आगे भविष्य में कोई बात नहीं होगी और देश में चले आ रहे इस सदियों के विवाद से आम आदमी को हमेशा के लिए निजाद मिल गई।



मग़र अचानक अगले दिन यानी 10 नवंबर 2019 को शाम क़रीब सात बजे, उप्र सेंट्रल सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के वही चेयरमैन Zufar Faruqi जिनका अभी मैंने ज़िक्र किया, वे अपने "इतने बड़े बयान से पलट गए।" और बोले कि 26 नवंबर 2019 को हम एक बैठक करेंगे, जिसमें हम विचार करेंगे कि हम कोर्ट के फैंसले पर कोई अपील या अपनी असहमति कोर्ट में दर्ज कराएं या नहीं! (असल में Zufar Faruqi का कहना है, कि उप्र सेंट्रल सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड हिंदुओं को दी जाने वाली उस जगह का विरोध नहीं कर रहा, बल्कि जो 5 एकड़ की जगह मस्जिद बनाने के लिए अयोध्या में कहीं और दी गई है, उसे ले या ना ले इसपर वह यानी बोर्ड मेंबर बैठक में विचार करेंगे।)

इसी वज़ह से मेरे मन में शंका आयी। क्योंकि मैं तो सिर्फ़ Zafaryab Jilani साब के बयान से परेशान था, कि कितना बुरा संदेश वो अपने लोगों को दे रहे हैं। जबकि फैंसला आने से पहले सब यही कह रहे थे, कि जो भी फैंसला आए सबको मंज़ूर होगा। और यहां तो सिर्फ़ जिलानी साब ही नहीं, बल्कि ओवैसी और ज़ुफर फ़ारूक़ी भी जिलानी साब की तरह कोर्ट के फैंसले पर सवाल खड़ा कर रहे हैं।

मुझे इन तीनों के बयानों में राजनीति और धर्म की दुकान चलाने वालों की साजिश नज़र आती है। क्योंकि जिलानी साब वक़ालत कर रहे थे मुस्लिम समुदाय के लिए जिनको किसी ने तो कहा होगा, कि जिलानी साब मुकदमा लड़ो हमारी बात की ख़ातिर। ओवैसी साब भी एक नेता हैं और फैंसला आने के बाद हो सकता है कि राजनीतिक गलियारे में उनकी पकड़ मुस्लिम समुदाय में कमज़ोर ना पड़ जाए, इसलिए वे इस बात को तूल दे रहे हो। और मुस्लिम समुदाय से सिर्फ़ ओवैसी ही नहीं हैं अकेले, तमाम नेता हैं जो मुस्लिम समुदाय में अपनी अच्छी पहचान रख़ते हैं और पकड़ रख़ते हैं। उन सबको कहीं न कहीं यही लग रहा होगा कि कहीं हमारे मुस्लिम समुदाय के लोग नाराज़ ना हो जाएं और हमें भविष्य में कोई दिक़्क़त ना हो जाए, चुनाव के वक़्त!

अब आख़िर में रही बात Zufar Faruqi साब की  जो उप्र सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के चैयरमैन हैं, उनका अचानक अपने बयान से पलटना साफ़ ज़ाहिर करता है कि मुस्लिम धर्म के नाम पर राजनीति और अपनी दुकान चलाने वाले मुस्लिम नेता और धर्मगुरु इस मामले का राजनीतिकरण कर रहे हैं और करना चाहते हैं। वरना उनकी नेतागिरी और दुकानें बंद हो जायेंगीं! इसके साथ - साथ मैं यह भी साफ़ कर दूं कि यह दिक़्क़त सिर्फ़ मुस्लिम समुदाय के लोग नहीं झेल रहे, बल्कि हिन्दू समुदाय के लोग भी झेल रहे हैं। अगर फैंसला हिंदुओ के पक्ष में नहीं आता, तो हिन्दू धर्म के नाम पर राजनीति करने वाले नेता और धर्मगुरू भी यही करते।

इन सभी बातों को देखते हुए, फ़िलहाल यह तो साफ़ है कि यह नेता अभी इस मामले को मुद्दा बनाए रखेंगे और अपनी राजनीति की दुकानें चलाते रहेंगे। अगर यह मामला निपट भी जाए तो भी बहुत सारे मामले हैं, जिन्हें मुद्दा बनाकर अभी काफ़ी और दशकों तक हिन्दू - मुसलमान को आपस में लड़वाकर यह लोग अपनी राजनीति कर सकते हैं।

कभी आपने सोचा या फ़िर कभी ज़रा सी देर के लिए भी यह ख़याल आपके दिमाग़ में आया, कि यह सब आख़िर कब और कैसे रुकेगा? कब तक आख़िर यह नेता देश के हिन्दू और मुसलमानों को ऐसे ही लड़वाते रहेंगे?

ईसपर मैं यह कहना चाहता हूं, कि इसमें सबसे बड़ी ग़लती हमारी ख़ुद की है। जिसमें हिन्दू भी हैं और मुसलमान भी। इन नेताओं के उकसावे में और इनकी बातों में हम ही तो आ जाते हैं। क्यों हैं हम इतने कमज़ोर? क्या हमारे अंदर इतनी भी सोचने और समझने की ताक़त नहीं, कि हक़ीक़त क्या है इन लालची नेताओं और धर्मगुरुओं की? क्या भगवान या हमारे ख़ुदा ने हमारे साथ धोखा किया है, जो सिर्फ़ सोचने के लिए दिमाग़ इन नेताओं और  इन धर्मगुरुओं को दिया है लेक़िन हमें नहीं!?

ऐसा नहीं है, हमारा ईश्वर और हमारा ख़ुदा हमारा दुश्मन नहीं है। उसने हम सबको अक़्ल दी है सोचने के लिए। मगर हमारे दिमाग़ पर दशकों से चलीं आ रहीं हिन्दू - मुस्लिम की बातें इतनी हावी हो चुकी हैं, कि हमने कभी इन बातों से कैसे निकला जाए उस बात को सोचना ही छोड़ दिया है। और यक़ीन मानिए, हमारी यह लापरवाही, यह आदत और यह हरक़त इतनी ख़तरनाक़ और जानलेवा है कि आपको इस बात का अंदाज़ा तब होगा, अगर किसी रोज़ किसी नेता या धर्मगुरु की वज़ह से आपकी जान ख़तरे पड़ेगी। जिस तरह रोज़ देश भर के ग़रीब इनकी राजनीति की भेंट चढ़ते हैं।

यह सभी राजनीति, हमारी बर्बादी और देश की बर्बादी तभी रुकेगी जब हम आपस में लड़ना छोड़ देंगे। आज आप लोग ख़ुद देख सकते हैं, कि अयोध्या पर फैंसला आने से पहले ही पूरे देश के सभी स्कूल बंद करा दिए गए, क्यों? ताक़ि हम लोगों ने जो नफ़रत अपने दिलों में पाल रखी एक दूसरे के लिए, वो कहीं ख़ून ख़राबे ना बदल जाये। क्यों सब डरे हुए थे? इसलिए क्योंकि सब जानते थे, कि सबने एक दूसरे के लिए अच्छा नहीं बुरा सोचा है। इसलिए क्योंकि हिन्दू मुसलमान को और मुसलमान हिन्दू को रोज़ सोशल मीडिया पर उल्टा सीधा बोल रहा है। टीवी चैनलों पर डिबेट्स में एक दूसरे के धर्म पर सवाल खड़े किये जा रहे हैं। सड़कों पर एक आदमी को घेरकर मार रहा है। और यह सब कौन कर रहा है और किसके उकसावे में? यह सब कर रहा है हिन्दू मुसलमान के साथ और मुसलमान हिन्दू के साथ, सिर्फ़ नेताओं और ढोंगी धर्मगुरुओं के उकसावे में!!

आगर हम इन नेताओं और धर्मगुरुओं के उकसावे ना आएं और एक दूसरे की इज़्ज़त करें और हर लिहाज़ से,  तो यह सब लड़ाई झगड़ा ख़त्म हो जाएगा! नहीं तो अयोधया का यह विवाद यह समझ लीजिए कि ख़त्म  नहीं, यहां से शुरू हुआ है!

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