"Delhi Air Pollution" क्या हैं समस्याएं और क्या हैं उपाय।
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देश की राजधानी दिल्ली यूं तो "Air Pollution" की वज़ह से पूरे साल ही ग्रस्त रहती है। लेक़िन सर्दियों के मौसम में हवा बहुत बुरी तरह से प्रदूषित हो जाती है, जिसका कारण है हवा में नमी। नम हवा भारी व शहर के निचले स्तर पर होती है और यह प्रदूषित हवा को वायुमंडल में जाने से रोकती है। जिस वज़ह से रोज़ पूरे दिन का शहरी प्रदूषण, पिछले दिनों के इकट्ठे हुए प्रदूषण में मिल जाता है और प्रदूषण की मात्रा दिन व दिन बढ़नी शुरू हो जाती है। इसी कारण शहर दूषित हवा का चेंबर बन जाता है। यह प्रकिया अक्टूबर महीने से शुरू होकर मार्च तक चलती है और यही कारण है, कि दिल्ली के लोगों का जीना मुश्किल हो गया है।
लेक़िन सर्दियां और यह नम हवा तो कोई नई बात नही है। दुनिया में हर जगह गर्मियां भी पड़ती हैं और सर्दियां भी। नम हवा भी रहती है और गर्म हवा भी। तो फ़िर क्यों हो रही है यह दिक़्क़त? क्यों दिल्ली के बच्चे, जवान और बूढ़े इतनी जानलेवा स्थिति में हैं? क्यों सरकारें चुप हैं? चलिए समझने की कोशिश करते हैं इस मामले को।
सबसे पहले तो देश के हर नागरिक को यह समझ लेना चाहिए कि "Air Pollution" सिर्फ़ "Delhi" में ही नहीं है! बल्कि यह दिक़्क़त उन सभी छोटे - बड़े शहरों में है, जो मैदानी इलाकों में आते हैं। जैसे दिल्ली, कानपुर, आगरा, लखनऊ, वाराणसी, हरियाणा आदि। असल में, पिछले बीस से पच्चीस सालों में जिस पैमाने पर पेड़ों को काटा गया है और पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ की गई है, यह सब उसका ही नतीजा है। तमाम सरकारों ने सड़कों व विकास कार्यों के नाम पर जिस तरह से पेड़ों की कटाई की, यह सोचे बिना कि इसके कितने भीषण परिणाम हो सकते हैं भविष्य में, यह सब उसकी देन है।
यहां तक की कटान के पेड़ों का इस्तेमाल नेताओं और सरकारी कर्मचारियों ने अपनी जेबों को भरने के लिए किया होगा, यह भी बहुत हद तक मुमकिन है। इस वज़ह से भी कटान जितना ज़रूरी होगा करना, उससे भी कहीं गुना ज़्यादा कटान किया गया होगा और आज भी यह सब जारी है! इसपर लगाम कोई नहीं लगा सकता फ़िलहाल, क्योंकि भारत के राजनेता किस मानसिकता के होते हैं, यह सभी जानते हैं। जिस वज़ह से जिनको इस बात की जानकारी होगी भी, वह लोग भी ख़ुद किसी दिक़्क़त में ना पड़ जाए इसलिए ना तो विरोध करते हैं और नाहीं इसकी कंप्लेंट! लेक़िन यह घोटाला भी काम की आड़ में ही होता है! उदाहरण के तौर पर: मान लीजिए कि किसी शहर को सड़क की ज़रूरत है, शहर के अंदरूनी या बाहरी क्षेत्र में। उसको बनाते वक़्त अगर रास्ते में पेड़ या पर्यावरण से संबंधित कोई भी चीज़ आती है, तो उसे काटना व हटाना ही पड़ेगा। यह बात तो अलग है कि उस कटे या हटे हुए सामान से नेताओं ने अपनी जेबों को भरा होगा। सड़क, फैक्ट्री, इंडस्ट्री आदि तो हमें चाहिए ही है ना!
असल में इन सबकी जड़ है, बढ़ी हुई और बढ़ती हुई "जनसंख्या*" यानी "Population*". असल में हर इंसान की ज़रूरत लगभग एक जैसे ही होती है। उनकी पूर्ति करने के लिए, फ़िर उस तादाद में उन वस्तुओं का उत्पादन भी किया जाता है। भारत की इतनी बड़ी जनसंख्या के लिए उत्पादन करने में कारखानों से वायुमंडल भी प्रदूषित होता है, फ़िर उस सामान को आप तक पहुंचाने में भी कई प्रकार की चीज़ों का सहारा लेना पड़ता है। उनसे भी भयंकर प्रदूषण वायुमंडल में इकट्ठा होता है। आपके पास पहुंचने के बाद आप उसे इस्तेमाल करते हैं, उसमे भी प्रदूषण होता है। इस्तेमाल करने के बाद हम उस सामान को फ़ेक देते हैं कोड़ेदान में, जब तक उस सामान को नगर निगम की गाड़ी नहीं लेकर जाती, वह भी हवा को प्रदूषित करता है। आख़िर में भारत के कुछ एक भृष्ट अधिकारियों और नेताओं के चलते, वह बेकार कचरा भी शहर के बाहरी क्षेत्रों में डाल दिया जाता है। वह कूड़ा महीनों वायुमंडल को प्रदूषित करता रहता है!!! (यहां तक हमने मोटे तौर पर यह समझा कि लोगों की बढ़ती हुई ज़रूरतों और उसके चलते संसाधनों के इस्तेमाल के कारण वायुमंडल किस तरह प्रदूषित होता है और साथ ही वायुमंडल में ज़हरीली हवा से लड़ने के लिए प्रकृति जिन पेड़ों का इस्तेमाल करती है, उनको क्यों काटा गया और उनका कैसे मुनाफ़े के लिए इस्तेमाल भी किया गया।)
नेताओं से यह एजेंसियां बड़े ही मुलायम अंदाज़ में बात करतीं हैं, जो सरासर एक मज़ाक है देश के लोगों के साथ। इन्हें वही कड़ा रुख़ अपनाना चाहिए नेताओं के साथ भी, जो रूख़ यह एजेंसियां एक आम आदमी पर अपनाती हैं। वही रुख़ अपनाना चाहिए इन्हें, जो एक हत्यारे के लिए अपनाती हैं! क्योंकि यह देश के लोगों की ज़िंदगी का सवाल है। मगर यह भी मुमकिन नहीं है, मैं जानता हूं। इसलिए ही भारत में पत्रकारिता का स्तर अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुका है।
अगर यह एजेंसियां ईमानदारी से अपना काम करतीं, तो भी बहुत हद तक इस प्रदूषण पर नियंत्रण पाया जा सकता था।
अब किया क्या जाए इस समस्या से निकलने के लिए इन सभी बातों को देखते हुए? तो इस समस्या से निपटने के लिए सबसे पहले देश के लोगों को यह चाहिए कि कुछ भी ऐसा ना करें, जिससे प्रदूषण बढ़ता हो। यानी बेकार में उन चीज़ों और उन संसाधनों का इस्तेमाल ज़रूरत से थोड़ा सा भी ज़्यादा ना करें, जिसकी वज़ह से प्रदूषण हो। रही बात बढ़ती हुई जनसंख्या की तो उस पर लोगों को ही समझदारी से सोचना होगा। क्योंकि जनसंख्या नियंत्रण में तब ही आएगी जब लोग इससे होने वाले नुकसान को समझेंगे!
(आख़िर में इन सभी बातों को देखते हुए इतना ही कहा जा सकता है कि यह एक बहुत लंबी लड़ाई है और बदकिस्मती से यह लड़ाई देश के लोगों को अकेले ही लड़नी होगी। वरना देश पूरी तरह से बर्बाद हो जाएगा इन भृष्ट नेताओं, भ्रष्ट समाचार एजेंसियों और बढ़ती हुई जनसंख्या की वज़ह से। क्योंकि जब देश के बच्चे और युवा ही बीमारी का शिकार हो जाएंगे, तो देश आबाद कैसे रह पाएगा!)
यहां खड़ा होता है सबसे बड़ा सवाल। कि क्या ज़रूरत है इतनी सड़कों की और बाक़ी संसाधनों की? तो जवाब बड़ा ही सीधा है। और वह है यह कि उसकी ज़रूरत जनता को ही तो है! चलिए, इसे भी थोड़ा आसान भाषा में समझते हैं।
असल में इन सबकी जड़ है, बढ़ी हुई और बढ़ती हुई "जनसंख्या*" यानी "Population*". असल में हर इंसान की ज़रूरत लगभग एक जैसे ही होती है। उनकी पूर्ति करने के लिए, फ़िर उस तादाद में उन वस्तुओं का उत्पादन भी किया जाता है। भारत की इतनी बड़ी जनसंख्या के लिए उत्पादन करने में कारखानों से वायुमंडल भी प्रदूषित होता है, फ़िर उस सामान को आप तक पहुंचाने में भी कई प्रकार की चीज़ों का सहारा लेना पड़ता है। उनसे भी भयंकर प्रदूषण वायुमंडल में इकट्ठा होता है। आपके पास पहुंचने के बाद आप उसे इस्तेमाल करते हैं, उसमे भी प्रदूषण होता है। इस्तेमाल करने के बाद हम उस सामान को फ़ेक देते हैं कोड़ेदान में, जब तक उस सामान को नगर निगम की गाड़ी नहीं लेकर जाती, वह भी हवा को प्रदूषित करता है। आख़िर में भारत के कुछ एक भृष्ट अधिकारियों और नेताओं के चलते, वह बेकार कचरा भी शहर के बाहरी क्षेत्रों में डाल दिया जाता है। वह कूड़ा महीनों वायुमंडल को प्रदूषित करता रहता है!!! (यहां तक हमने मोटे तौर पर यह समझा कि लोगों की बढ़ती हुई ज़रूरतों और उसके चलते संसाधनों के इस्तेमाल के कारण वायुमंडल किस तरह प्रदूषित होता है और साथ ही वायुमंडल में ज़हरीली हवा से लड़ने के लिए प्रकृति जिन पेड़ों का इस्तेमाल करती है, उनको क्यों काटा गया और उनका कैसे मुनाफ़े के लिए इस्तेमाल भी किया गया।)
अब समस्या क्या - क्या हैं? उनपर भी एक नज़र डाल लेते हैं।
पहली और सबसे बड़ी समस्या है, "बढ़ी हुई जनसंख्या" और उस जनसंख्या की पूर्ति करने के लिए इस्तेमाल होने वाले संसाधन। तो यह सबको समझना होगा कि जनसंख्या को अचानक कम नहीं किया जा सकता और नाहीं सभी प्रकार के और संसाधन बंद किए जा सकते हैं, जो इतनी बड़ी जनसंख्या के लिए इस्तेमाल होते हैं।
दूसरी समस्या है, भारत के भृष्ट नेता और अधिकारी। जैसा आप सब भी जानते हैं कि नेताओं और भृष्ट सरकारी अधिकारियों के ख़िलाफ़ कोई भी क़दम उठाना आम आदमी के बस की बात नहीं। क्योंकि एक अकेला या कुछ लोगों का समूह (Group) भी इन भृष्ट नेताओं और अधिकारियों का कुछ नहीं बिगाड़ सकता। उसकी वज़ह यह है कि यह नेता और अधिकारी शिकायतकर्ता (कंप्लेंट करने वाला) को ही किसी झूठे मामलें में फांस देंगे। इसलिए इनका भी कोई इलाज़ नहीं है।
तीसरी समस्या है, कि भारत के लगभग सभी न्यूज़ चैनल व समाचार एजेंसियां इस मामलें पर अपनी गम्भीरता नहीं दिखा रहीं। जिस वज़ह से भी यह प्रदूषण की समस्या कम नहीं हो रही है। आपको यह बात कुछ अज़ीब लग रही होगी, कि न्यूज़ चैनल व समाचार एजेंसियां तो पूरे दिन इस विषय पर बात कर रहीं हैं। तो फ़िर हम क्यों इस बात को कह रहे हैं कि न्यूज़ चैनल व समाचार एजेंसियां इस पर गम्भीर नहीं हैं?
दरअसल न्यूज़ चैनल, न्यूज़ एंकर्स, न्यूज़ रिपोर्टर और समाचार एजेंसियां आपको यह बता रहीं हैं, कि आज दिल्ली में इतना "Pollution" है और अन्य शहरों में इतना। साथ ही लोगों से जगह - जगह जाकर उनसे प्रदूषण पर आपको प्रतिक्रिया लेते हुए दिखा रहीं हैं। लेक़िन यह सब एक छल है, जो देश के लोगों के साथ किया जा रहा है।
हम यह बात इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि प्रदूषण कहां पर कितना है यह पूछने से या लोगों को इस प्रदूषण से क्या - क्या दिक्कतें हो रहीं हैं यह पूछने से, प्रदूषण कम नहीं होगा और ना-हीं लोगों की दिक्कतें दूर होंगी। यह दिक्कतें जैसा हमने आपसे पहले कहा कि अचानक दूर नहीं हो सकतीं, इसलिए इनमें कमी लाने के लिए देश के ज़िम्मेदार लोगों यानी नेताओं को कटघरे में खड़ा करना पड़ेगा। यही नेता यानी जो सत्ता में हैं या जो मौजूदा सरकार को चला रहे हैं, उनसे सवाल जवाब किया जाए, जिसकी ज़िम्मेदारी है इन्हीं न्यूज़ चैनलों व सभी समाचार एजेंसियों की। लेक़िन यह न्यूज़ चैनल्स, उनके एंकर्स, न्यूज़ रिपोर्ट्स और सभी समाचार एजेंसियां नेताओं को कटघरे में नहीं खड़ा करतीं।
हम यह बात इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि प्रदूषण कहां पर कितना है यह पूछने से या लोगों को इस प्रदूषण से क्या - क्या दिक्कतें हो रहीं हैं यह पूछने से, प्रदूषण कम नहीं होगा और ना-हीं लोगों की दिक्कतें दूर होंगी। यह दिक्कतें जैसा हमने आपसे पहले कहा कि अचानक दूर नहीं हो सकतीं, इसलिए इनमें कमी लाने के लिए देश के ज़िम्मेदार लोगों यानी नेताओं को कटघरे में खड़ा करना पड़ेगा। यही नेता यानी जो सत्ता में हैं या जो मौजूदा सरकार को चला रहे हैं, उनसे सवाल जवाब किया जाए, जिसकी ज़िम्मेदारी है इन्हीं न्यूज़ चैनलों व सभी समाचार एजेंसियों की। लेक़िन यह न्यूज़ चैनल्स, उनके एंकर्स, न्यूज़ रिपोर्ट्स और सभी समाचार एजेंसियां नेताओं को कटघरे में नहीं खड़ा करतीं।
नेताओं से यह एजेंसियां बड़े ही मुलायम अंदाज़ में बात करतीं हैं, जो सरासर एक मज़ाक है देश के लोगों के साथ। इन्हें वही कड़ा रुख़ अपनाना चाहिए नेताओं के साथ भी, जो रूख़ यह एजेंसियां एक आम आदमी पर अपनाती हैं। वही रुख़ अपनाना चाहिए इन्हें, जो एक हत्यारे के लिए अपनाती हैं! क्योंकि यह देश के लोगों की ज़िंदगी का सवाल है। मगर यह भी मुमकिन नहीं है, मैं जानता हूं। इसलिए ही भारत में पत्रकारिता का स्तर अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुका है।
अगर यह एजेंसियां ईमानदारी से अपना काम करतीं, तो भी बहुत हद तक इस प्रदूषण पर नियंत्रण पाया जा सकता था।
अब आप समझ ही गए होंगे कि असली समस्या क्या है और कौन है इस समस्या के लिए कितना ज़िम्मेदार।
अब किया क्या जाए इस समस्या से निकलने के लिए इन सभी बातों को देखते हुए? तो इस समस्या से निपटने के लिए सबसे पहले देश के लोगों को यह चाहिए कि कुछ भी ऐसा ना करें, जिससे प्रदूषण बढ़ता हो। यानी बेकार में उन चीज़ों और उन संसाधनों का इस्तेमाल ज़रूरत से थोड़ा सा भी ज़्यादा ना करें, जिसकी वज़ह से प्रदूषण हो। रही बात बढ़ती हुई जनसंख्या की तो उस पर लोगों को ही समझदारी से सोचना होगा। क्योंकि जनसंख्या नियंत्रण में तब ही आएगी जब लोग इससे होने वाले नुकसान को समझेंगे!
(आख़िर में इन सभी बातों को देखते हुए इतना ही कहा जा सकता है कि यह एक बहुत लंबी लड़ाई है और बदकिस्मती से यह लड़ाई देश के लोगों को अकेले ही लड़नी होगी। वरना देश पूरी तरह से बर्बाद हो जाएगा इन भृष्ट नेताओं, भ्रष्ट समाचार एजेंसियों और बढ़ती हुई जनसंख्या की वज़ह से। क्योंकि जब देश के बच्चे और युवा ही बीमारी का शिकार हो जाएंगे, तो देश आबाद कैसे रह पाएगा!)
*(कृप्या ध्यान दें: हमने आपसे अपने इस ब्लॉग में भारत की बढ़ती हुई "जनसंख्या" की बात की है, जिसमें हम साफ़ कर दें कि हमने किसी भी व्यक्ति, विशेष, वर्ग या धर्म को उसके लिए ना तो ज़िम्मेदार ठहराया है और नाहीं किसी को इसके लिए दोषी ठहराया है। साथ ही ना किसी धर्म को निशाना बनाया है। हमारा उद्देश्य आपको यह बताना था इस ब्लॉग के माध्यम से, कि इस बढ़ी हुई जनसंख्या का कितना बड़ा दुष्प्रभाव भारत की अर्थव्यवस्था पर और लोगों के दैनिक जीवन पर पड़ रहा है। इस बढ़ी हुई जनसंख्या के लिए सभी धर्म के लोग समान रूप से ज़िम्मेदार हैं, जिन्होंने परिवार नियोजन को नहीं समझा।)
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