Sunday, November 24, 2019

JNU छात्रों का जारी रहेगा विरोध प्रदर्शन।

Delhi, India: JNUSU (Jawaharlal Nehru University Student Union) और MHRD (Ministry of Human Resources Development) के बीच हुई मीटिंग किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पायी। यह मीटिंग देर शाम दिनांक 22-11-2019 को हुई थी। छात्र अपनी उसी मांग अथवा बात पर हैं, कि "हम फ़ीस में ज़रा सी भी बढ़ोतरी नहीं चाहते, क्योंकि हम यह बात पहले भी कह चुके हैं कि हम बढ़ी हुई फ़ीस देने में सक्षम नहीं हैं। जो फ़ीस हमसे ली जा रही है, वही देने में हमें और हमारे परिवार को काफ़ी दिक़्क़तों का सामना करना पड़ता है। इसलिए हम अपनी जायज़ मांग पर कायम हैं और हम अपना विरोध प्रदर्शन जारी रखेंगे।" 


आपको बता दें, कि JNU छात्र पिछले कई हफ़्तो से सरकार और बढ़ी हुई फ़ीस के ख़िलाफ़ अपना विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। जिसमें उन्होंने काफ़ी दिक़्क़तों का सामना भी किया और हाल में एक न्यूज़ चैनल पर दिए अपने बयान में JNU के एक छात्र Sunny Dhiman ने यह कहा, कि "क्यों हमारी बात सरकार नहीं सुन रही? क्यों हम छात्रों को मारा गया? क्यों हमारे भविष्य के साथ खेला जा रहा है? हमारी पढाई ख़राब हो रही है, इस विरोध प्रदर्शन के चलते!"

भारत के लगभग सभी विपक्षी दल व नेता JNU छात्रों पर कराई गई लाठीचार्ज का कड़ा विरोध कर रहे हैं और सरकार पर आरोप लगा रहे हैं, कि भारत सरकार (भारतीय जनता पार्टी) छात्र विरोधी है। विपक्षी दल व विरोध प्रदर्शन कर रहे JNU छात्रों ने सरकार पर यह भी आरोप लगाया है, कि सरकार JNU जैसी यूनिवर्सिटी को निजी हाथों में देना यानी उसका Privatization करना चाहती है।


वहीं भारत सरकार (भारतीय जनता पार्टी) व उसके सभी नेता छात्रों के विरोध प्रदर्शन को एक सोचा समझा राजनेतिक क़दम बता रहे हैं। भाजपा नेता Giriraj Singh ने तो यहां तक कह दिया कि JNU छात्र विश्विद्यालय को अर्बन नक्सलिम का अड्डा बनाना चाहते हैं! सोशल मीडिया पर भी लोगों के अलग - अलग तर्क हैं। किसी का कहना है, कि "JNU छात्र देशविरोधी हैं, छात्रों के पास फ़िल्म देखने के लिए पैसे हैं लेकिन फ़ीस देने के लिए नहीं और कुछ का कहना है कि हम टैक्स पेयर अपने पैसे JNU छात्रों पर ख़र्च क्यों करें?"

हालांकि भाजपा नेता और लोगों के इन सभी तर्कों का कोई लेना - देना नहीं है फ़ीस बढ़ोतरी से, क्योंकि यह सब एक प्रकार के आरोप हैं और क़ानूनी तौर पर देखा जाए तो किसी संस्थान या व्यक्ति विशेष पर बिना किसी सबूत के ग़लत टिप्पणी करना, क़ानूनन अपराध भी है। क्योंकि कौन सही है और कौन ग़लत उसका फैंसला माननीय न्यायालय ही कर सकता है। आपको बता दें कि JNU एक सरकार द्वारा चलाए जाने वाला संस्थान है, जिसे विशेष दर्जा प्राप्त है और यह यूनिवर्सिटी, खोली ही इसलिए गयी और इसकी फ़ीस इसलिए ही इतनी कम रखी गई थी, ताक़ि देश के ग़रीब तबक़े से आने वाले छात्र इस विश्विद्यालय में पढ़ सके।


देश के ज़्यादातर न्यूज़ चैनलों पर भी छात्रों के इस विरोध प्रदर्शन को ग़लत बताया जा रहा है। जिसपर JNU छात्रों का आरोप है, कि मीडिया सरकार की कठपुतली बनी हुई है और हमारे ख़िलाफ़ देश के लोगों को ग़लत संदेश दे रही है। वहीं दूसरी ओर सिर्फ़ एक न्यूज़ चैनल NDTV ने JNU छात्रों में से कुछ छात्रों को अपने न्यूज़ स्टूडियो में बुलाया, जिसमें से एक छात्र जिन्हें "Shashi Bhushan Pandey व Shahi Bhushan Samad" भी कहा जाता है, उन्हें बुलाया और उनसे बात की। जहां इन छात्रों ने अपनी बात रखी और देश के लोगों तक अपनी बात पहुचाई।

NDTV की एंकर Nidhi Kulpati ने छात्रों से उनकी बात और उनकी मांगों के बारे में पूछा, जिसमें छात्रों की ओर से मांगों को काफ़ी हद तक समझा जा सकता था। छात्रों की दिक्क़ते पूरी तरह से साफ़ नज़र आ रही थी, कि वह और उनके परिजनों की स्थिति ऐसी नहीं है, कि वो बढ़ी हुई फ़ीस दे पाएं। (आपको बता दें, कि Shashi Bhushan Pandey ठीक तरह से या आप कह सकते हैं कि देख नहीं सकते। विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस द्वारा की गई लाठीचार्ज में Shashi Bhusan को बुरी तरह मारा गया था, यह जानते हुए भी कि वे देख नहीं सकते फ़िर भी पुलिस ने उन्हें बुरी तरह मारा। जिससे उनकी हालत बिगड़ गई। उनकी हालत बिगड़ते देख पुलिस ने उन्हें आनन - फानन में दिल्ली के ही AIIMS अस्पताल में भर्ती कराया। NDTV स्टूडियो में भी वे कुछ हालत सुधारने के बाद आए थे, लेकिन उन्हें किसी व्यक्ति का सहारा लेना पड़ रहा था, चलने के लिए!)



(आख़िर में आपको यह भी बता दें, कि अभी तक सरकार या जो भी फ़ीस बढ़ाने के पक्ष में है, या जो फ़ीस बढ़ाई गई है। जिसकी वज़ह से छात्रों का प्रदर्शन जारी है, उसपर "कोई एक भी" ठोस वज़ह सामने ना तो सरकार का कोई नेता रख पाया है और नाहीं सोशल मीडिया पर कोई व्यक्ति विशेष! जिस कारण छात्रों की पढ़ाई ख़राब हो रही है और छात्र अपने आप को ठगा हुआ सा महसूस कर रहे हैं।)

Tuesday, November 19, 2019

PMC बैंक खाताधारक नहीं भूलेंगे कभी यह विश्वासघात।

PMC Bank यानी (Punjan And Maharashtra Co-operative Bank Ltd) घोटाला। जिसके शिकार हुए तमाम निर्दोष लोग, कुछ की इस घोटाले के चलते जानें भी चलीं गयीं। लोग सरकार से गुहार लगाते रहे, प्रदर्शन करते रहे लेक़िन किसी ने इन लोगों की गुहार अभी तक नहीं सुनी है। आपको बता दें जो भी आप आगे पढ़ने जा रहे हैं, वह हमारी अपनी निजी प्रतिक्रिया है, नाहीं हम कोई अर्थशास्त्री हैं और नाहीं हमारे पास किसी प्रकार के सरकारी आंकड़े। 


हम सिर्फ़ उन लोगों का दर्द आपको और देश की सरकार को महसूस कराना चाहते हैं, जो अपने ही पैसों पर अपना हक़ खोने के बाद आज सड़कों पर, पिछले दो महीनों से हैं और इसी घोटाले के चलते कुछ लोगों ने दीपावली आने के कुछ ही दिन पहले, अपने सगे परिजनों को हमेशा के लिए खो दिया!!! महाराष्ट्र के इस बैंक घोटाले के चलते सिर्फ़ आम लोग ही शिकार नहीं हुए, बल्कि जिस महाराष्ट्र में मुंबई शहर भी है, जिसे आप सपनों की नगरी भी कहते हो और जहां आपके चहेते अभिनेता और अभिनेत्रियां भी रहती हैं, उनमे से भी कुछ लोग इस घोटाले के कारण दिक़्क़त में आ गए! (नोट: PMC Bank घोटाले से सोलह लाख खाताधारक हताहत हुए हैं और अब तक इस घोटाले से आहत होकर ग्यारह लोगों की जानें जा चुकी हैं। Report: ANI News)

इस मामले को चलते हुए जैसा हमने आपको बताया कि लगभग दो महीने हो चुके हैं, आज भी PMC Bank खाताधारकों ने विरोध प्रदर्शन किया और सरकार से मांग की अपने पैसों को निकालने की! जिसपर सरकार व उनके नेता अपनी - अपनी तरह से आश्वाशन और प्रतिक्रिया दे रहे हैं। लेक़िन आश्वाशन और प्रतिक्रिया देने से महाराष्ट्र के पीड़ित खाताधारकों की समस्या हल नहीं हो सकती, यह बात देश के आम लोग तो समझ रहे हैं लेकिन वो नेता नहीं जो आश्वासन और प्रतिक्रिया दे रहे हैं।


आज असल में खाताधारकों ने इसलिए विरोध प्रदर्शन किया, क्योंकि बॉम्बे हाईकोर्ट ने उनकी उस याचिका को मानने से इंकार कर दिया, जिसमें याचिका कर्तायों ने मांग की थी, कि हमें हमारे लॉकर को खोलने की इजाज़त दी जाए। जिसपर बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरबीआई के काम में हस्तक्षेप करने से साफ़ मना कर दिया। जिस पर पहले से ही परेशान और मायूस खाताधारकों की हिम्मत टूट गई और वह सड़कों पर बॉम्बे हाईकोर्ट, आरबीआई और पीएमसी बैंक के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी करने लगे।


आपको यह मुख्य बात भी बताना ज़रूरी है कि  जिस वक़्त यह PMC बैंक घोटाला हुआ, उस वक़्त केंद्र सरकार जिसकी ज़िम्मेदारी है पूरे देश के लोगों की दिक्कतें सुनना और उन दिक़्क़तों को हल करना, वह उस वक़्त से लेकर आज भी महाराष्ट्र में अपनी जगह बनाने यानी अपने भाजपा मंत्री देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) को मुख्यमंत्री बनाने के काम में लगी हुई है। क्योंकि भाजपा और शिवसेना में आपस में ठन गई है अपने मंत्री को मुख्यमंत्री बनने की बात को लेकर। यानी केंद्र सरकार PMC Bank घोटाले से पहले लगी हुई थी चुनाव प्रचार में और अब जीतने के बाद लगी हुई है मुख्यमंत्री का चयन करने में, जिसके बीच में फंसा हुआ है PMC बैंक का निर्दोष खाताधारक!!!

फ़िलहाल खाताधारकों को उनका पैसा और उनका हक़ मिले या ना मिले। लेक़िन खाताधारकों को समय - समय पर केंद्र सरकार की ओर से  "Nirmala Sitharaman" जी वही एक "आश्वासन" देती रहेंगी जिसकी मैंने आपसे ऊपर बात की। बाक़ी न्यूज़ चैनलों के पास राम मंदिर और हिन्दू - मुसलमान से ही फुरसत नहीं है, इसलिए हमारे और आपके पास सिर्फ़ एक ही विकल्प है, कि हम या तो पूरी तरह देश के सभी लोग सरकार का बॉयकॉट करें या फ़िर अपने ईश्वर से प्राथना।

Monday, November 18, 2019

JNU Students और Delhi Police

New Delhi, India: JNU Students के विरोध प्रदर्शन के चलते दिल्ली की सड़कों पर गाड़ियों की गति थम गई है यानी जाम की स्थिति बनी हुई है। छात्र मुख्यता जिस जगह अपना प्रदर्शन कर रहे हैं, उसे सफदरजंग टॉम्ब मार्ग कहा जाता है। 


इंडियन एक्सप्रेस न्यूज़ के अनुसार पुलिस ने यहीं, JNU छात्रों पर लाठीचार्ज किया। जिसके चलते ट्विटर पर लोगों की कड़ी प्रतिक्रिया केंद्र सरकार, JNU के वाईस चांसलर और दिल्ली पुलिस के लिए देखी जा रही है।

छात्र सड़कों पर डटे हुए हैं और साथ ही अपनी शिक्षा की सुरक्षा हेतु व अपने भविष्य हेतु सड़कों पर लोगों को रोक - रोककर उनसे आग्रह कर रहे हैं, कि उनकी आवाज़ को बुलंद बनाये रखने में उनका साथ दें। उन्होंने लोगों से यह भी कहा कि यह सब सिर्फ़ हम अपने भविष्य के लिए नहीं, बल्कि देश के ग़रीब युवाओं और उनके परिवारों के लिए कर रहे हैं। इसलिए जैसे भी हो सके हमारे इस प्रदर्शन को सार्धक बनाने में हमारी मदद करें। चाहे तो इसके लिए अपने सोशल मीडिया का भी इस्तेमाल कर सकते हैं!

वहीं दूसरी ओर कुछ न्यूज़ चैनलों पर और सोशल मीडिया पर कुछ दिनों से JNU के छात्रों की छवि को ख़राब करने की कोशिश की जा रही है। कुछ न्यूज़ चैनल की डिबेट्स में छात्रों को "छात्र" कहकर संबोधित नहीं किया जा रहा, बल्कि उनको एक अजीब नाम से संबोधित किया जा रहा है। नाम कुछ इस तरह से है "Tukde - Tukde Gang". साथ ही छात्रों पर यह आरोप भी लगाया जा रहा है कि वह अपनी फ़ीस की आड़ में, अपनी व विपक्षी दलों की राजनीति चमका रहे हैं!!!


एक ट्विटर यूजर ने दिल्ली पुलिस द्वारा लाठीचार्ज में बुरी तरह घायल हुए छात्रों की तस्वीरों को अपने ट्विटर हैंडल से पोस्ट किया। साथ ही इसकी कड़ी आलोचना भी की। तस्वीरों में साफ़ देखा जा सकता है, कि कितनी बर्बरता से दिल्ली पुलिस ने छात्रों की जायज़ मांगों को कुचलने की कोशिश की है। देश का भविष्य कहे जाने वाले छात्रों के साथ हो रहे इस अत्याचार पर ज़्यादातर न्यूज़ चैनलों ने चुप्पी साथ ली है।

कुछ न्यूज़ चैनल सिर्फ़  सड़कों पर लगे जाम की बात कर रहे हैं। इसी के चलते एक चैनल के रिपोर्टर ने जब प्रदर्शन में शामिल एक छात्र से पूछा, कि आपको नहीं लगता आपके प्रदर्शन के चलते सड़कों पर जाम लग रहा है? उसपर छात्र ने जो जवाब दिया, उसपर वह रिपोर्टर पानी - पानी हो गई। जवाब ये था, कि "आपको एक दिन का जाम नज़र आ रहा है, लेक़िन हमारा और देश के ग़रीब छात्रों का दर्द नज़र नहीं आ रहा, हमारा भविष्य नज़र नहीं आ रहा? हम मानते हैं कि जाम लग रहा है हमारे विरोध प्रदर्शन के कारण, लेक़िन आप लोग उस वक़त क्यों चुप थे और हमारे ऊपर  ही तोहमत क्यों लगा रहे थे, जब हम JNU के अंदर ही वाईस चांसलर से मिलना चाहते थे बढ़ी हुई फ़ीस की बात को लेकर। हम आज यहां, जो सड़कों पर हैं उसके ज़िम्मेदार आप लोग और JNU के VC हैं जो हमसे नहीं मिले! हम कहां से देंगे इनती बढ़ी हुई फ़ीस??? क्या ग़रीबों को पढ़ने का अधिकार नहीं ? हम जायज़ बात के लिए आज सड़कों पर खड़े हैं सुबह से जिसके चलते सिर्फ़ एक सड़क पर जाम लग रहा है, जिसपर आप हमें नसीहत दे रहे हो। लेक़िन जब चुनाव के वक़्त नेताओं की रैलियां निकलती हैं और पूरे शहर को लगभग बंद सा कर दिया जाता है, तो आपके मुंह से एक शब्द नहीं निकलता!!!"

JNU Students पहुंचे पार्लियामेंट का घेराव करने!

Delhi: JNU Students पिछले कई हफ्तों से अपना विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं बेहिसाब बढ़ी हुई फ़ीस के चलते। जिसकी वज़ह से वह JNU (जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय) के "Vice Chancellor" मिलकर उनसे बात करना चाहते थे, लेक़िन वाईस चांसलर उनसे नहीं मिले। जिस वज़ह से उन्होंने अपना विरोध जताया और उनकी परेशानियां विरोध के रूप में सड़क पर आ गयीं। लेक़िन फ़िर भी वाईस चांसलर उनसे नहीं मिले। 


आपको बता दें, कि किसी बात का विरोध करना भारत में असंवेधानिक नहीं है, छात्र अपना विरोध कर सकते हैं। इसके बावजूद पुलिस ने दिल्ली में चल रहे छात्रों के इस विरोध प्रदर्शन के दौरान पिछले दिनों, छात्रों पर लाठीचार्ज भी किया! आपको साथ में यह भी बता दें कि पुलिस के लाठीचार्ज में सिर्फ़ युवक ही नहीं, युवतियां भी पुलिस की तरफ़ से हुई लाठीचार्ज का शिकार हुयीं थीं। (आज भी एक छात्र के अनुसार छात्रों से पुलिस ने मार पीट की।)

छात्रों का यह भी आरोप है, कि मीडिया (भारत के ज़्यादातर न्यूज़ चैनल्स)  उनके साथ पक्षपात कर रही है। उनको सोशल मीडिया के माध्य्म से भी अपमानित किया जा रहा है! एक छात्र ने पिछले दिनों कहा, कि "हम अपनी जायज़ मांगों के लिए लड़ रहे हैं और विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, लेक़िन वाईस चांसलर हमसे मिल नहीं रहे। पुलिस हमें मार रही है और मीडिया हमारे ही ख़िलाफ़ एक राजनीतिक अभियान छेड़े हुई है! कोई नेता या कोई भी ज़िम्मेदार व्यक्ति हमसे उस विषय में हमसे मिलने नहीं आया। हम ग़रीब हैं क्या यही हमारा गुनाह है।"

इस सबके बीच आज JNU छात्रों का प्रदर्शन दल पार्लियामेंट का घेराव करने के लिए, दोपहर करीब 3 बजे से बैठा हुआ है। दिल्ली पुलिस ने इसके चलते अपने पुख़्ता इंतेज़ाम कर लिए हैं, ताक़ि छात्र किसी भी रूप से पार्लियामेंट परिसर व अन्य किसी संवेदनशील जगह पर प्रवेश ना कर सकें। इधर नेता भी सभी दलों के अपनी - अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। ट्विटर पर भी अलग - अलग नाम से हैशटैग छात्रों के विरोध के चलते चलाए जा रहे हैं।

(आज भारत की राजधानी यानी दिल्ली में "Microsoft के Bill Gates" भी आए हुए हैं। आज उन्होंने भाजपा की नेता स्मृति ईरानी से भी मुलाकात की।)

आपको आख़िर में यह भी बता दें, कि दिल्ली प्रदूषण के मामले में अपनी सभी हदे पार कर चुकी है और दिल्ली के सभी डॉक्टरों ने सलाह दी है, कि ज़रूरी काम से ही घर के बाहर निकले अन्यथा नहीं। इस प्रदूषण को देखते हुए भी JNU के छात्र प्रदर्शन करने को मजबूर हैं, उसके बावजूद भी नेता और उनके समर्थक, छात्रों की दिक्कतें सुनने को तैयार नहीं!

Sunday, November 17, 2019

Ayodhya फैंसले पर पुनर्विचार याचिका दाखिल करेगा AIMPLB (All India Muslim Personal Law Board)

आज उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में AIMPLB (All India Muslim Personal Law Board) की मीटिंग हुई, जिसकी अध्यक्षता बोर्ड के राष्ट्रियाध्यक्ष अरशद मदनी (Arshad Madni) ने की। यह मीटिंग अयोध्या से जुड़े फैंसले पर की गई थी, जिसमें माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने 09 नवंबर 2019 को फैंसला राम मंदिर के पक्ष में दिया था और दूसरे पक्ष (मुस्लिम समुदाय) को अयोध्या में ही कहीं उपयुक्त स्थान पर पांच एकड़ ज़मीन देने का फैंसला सुनाया था। 

लेक़िन फैंसले वाले दिन ही सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के वक़ील Zafaryab Jilani ने अपनी असंतुष्टि ज़ाहिर कर दी थी, साथ ही Asaduddin Owasi साब ने भी एक बयान में यह कहा था कि न्यायालय की ओर से दी जाने वाली पांच एकड़ ज़मीन हमें नहीं चाहिए (यह इन दोनों लोगों के अपनी निजी बयान थे।) जिसपर बाद में न्यूज़ चैनलों पर काफ़ी डिबेट्स भी हुयीं और अलग - अलग तरह से इन बयानों के कयास भारत में भारत के नेता और लोग लगाने लगे। कुछ लोग भारत में इन दोनों के बयानों पर सहमत थे, तो वहीं दूसरी ओर कुछ लोग इनके बयानों से सहमत नहीं थे। (सहमति व असहमति में देश के सभी समुदाय के लोग थे।) 

आज उसी फैंसले को लेकर एक मीटिंग AIMPLB के सदस्यों ने की, जिसमें राष्ट्रियाध्यक्ष अरशद मदनी ने कहा कि हम न्यायालय में एक पुनर्विचार याचिका (Review Petition) दाखिल करेंगे। ताक़ि इस मामले में न्यायालय एक बार और हमारी प्रार्थना के तहत फैंसले पर विचार करे। साथ ही बैठक में यह भी साफ़ कहा कि जो ज़मीन हमें  दी जा रही है, उसे हम अपनी मस्जिद (बाबरी मस्जिद) के बदले नहीं ले सकते। क्योंकि यह हमारे धर्म के ख़िलाफ़ है यानी शरिया कानून के तहत। 


Zafaryab Jilani साब ने भी मीटिंग के बाद हुई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस बात को दोहराया और कहा, कि AIMPLB न्यायालय में Review Petition दाख़िल करेगा और जो पांच एकड़ ज़मीन मुस्लिम समुदाय को दी जा रही है AIMPLB उसे भी नहीं लेना चाहता। साथ ही जफरयाब जिलानी साब ने यह भी स्पष्ट रूप से कहा, कि हमें ज़मीन वहीं हमारी बाबरी मस्जिद वाली जगह पर चाहिए।

जिसके बाद यह ख़बर सभी न्यूज़ चैनलों की ब्रेकिंग न्यूज़ बन गई और इसपर शुरू हो गयीं रोज़मर्रा की वही डिबेट्स। जिसमें सब अपनी अपनी बात रख रहे थे। हालांकि पुनर्विचार याचिका दाखिल करना असंवेधानिक बिल्कुल नहीं है, याचिका दाखिल की जा सकती है। क्योंकि भारत एक लोकतांत्रिक देश है और क़ानून के मुताबिक भी यह कोई ग़लत क़दम नहीं है।

लेक़िन इसका कितना असर देश में रह रहे लोगों के ऊपर पड़ेगा, यह देखने वाली बात होगी। क्योंकि फैंसले वाले दिन ही यानी 09 नवंबर 2019 को जब Jilani और Owaisi साब का बयान आया था, तो अचानक सोशल मीडिया पर लोगों की प्रितिक्रिया एक समान नहीं थी।



(12 नवंबर 2019 की पोस्ट में, मैंने Jilani और Owasi साब के बयानों का ज़िक्र किया था। जिसमें मैंने अपनी निजी टिप्पणी और उससे संबंधित अपनी राय लोगों के सामने रखी थी। अगर आप चाहें तो वह पोस्ट आप यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं।)

Friday, November 15, 2019

JNU Students Protest

JNU Students Protest


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आसान शब्दों में मैंने JNU (Jawaharlal Nehru University) Students के विरोध प्रदर्शन के कारण को समझा और उसी आसान भाषा में, मैं आपको भी समझाने की कोशिश करूंगा अपने इस ब्लॉग के माध्य्म से।

JNU यानी जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय जो दिल्ली में स्तिथ है वह भारत का एक प्रसिद्धि विश्वविद्यालय है, जिसका निर्माण सन 1969 में हुआ था। यह एक सरकारी यूनिवर्सिटी है जिस तरह सरकारी स्कूल होते हैं छोटे बच्चों के लिए, जो हर शहर या गांव में होते हैं। जहां ग़रीब तबक़े यानी उन परिवारों के बच्चे शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं जिन परिवारों की आय बहुत ही न्यूनतम होती है। परिवारों की माली हालत गंभीर होने के कारण, बच्चों को मिड डे मील (Mid Day Meal) भी दिया जाता है, ताक़ि बच्चे कुपोषण का शिकार ना हो जाएं। क्योंकि कुपोषण की वज़ह से किसी भी उम्र का व्यक्ति बेहद बुरी तरह से बीमार हो सकता है, यहां तक की उसकी जान भी जा सकती है। काफ़ी सारे मामले ऐसे भी आए हैं, जिसमें मिड डे मील दूषित भी पाया गया और पर्याप्त भी नहीं पाया गया जिससे बच्चे बीमारियों का भी शिकार हुए और कमज़ोरी का भी। (आपको बता दें कि छोटे बच्चों के लिए सरकार की ओर से खोले गए यह स्कूल लगभग बिना फ़ीस के बच्चों को शिक्षा प्राप्त कराने के लिए खोले गए हैं, लेकिन इन स्कूलों में प्राप्त हुई जानकारियों के अनुसार बच्चे कोई भी शिक्षा बच्चे प्राप्त नहीं कर पाते!)

लेक़िन JNU में छात्रों को फ़ीस देनी पड़ती है और अभी हाल में ही अचानक फ़ीस में छात्रों के अनुसार बेहिसाब बढ़ोतरी कर दी गई, जिसके चलते छात्रों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया उसके विरोध में, वो सुनने में आपके भी आया होगा। जिसपर सियासी घमासान फ़िलहाल अभी न्यूज़ चैनलों पर जारी है, जिसमें किसी चैनल या न्यूज़ ऐजेंसी का कुछ कहना है तो किसी का कुछ। यानी एक न्यूज़ चैनल छात्रों के प्रदर्शन पर सिर्फ़ रिपोर्टिंग कर रहा है तो वहीं दूसरी ओर, दूसरा न्यूज़ चैनल छात्र और छात्रों के विरोध प्रदर्शन को पूरी तरह ग़लत ठहरा रहा है। कुछ न्यूज़ चैनलों पर यह भी कहा जा रहा है कि छात्र दुर्व्यवहार कर रहे हैं लोगों व पुलिसकर्मियों से।

यह तो सब थी बात जो स्टूडियो में बैठकर न्यूज़ एंकरों ने कही और आपको व मुझे पता चली। लेक़िन इस पूरे विवाद में ख़ुद छात्रों का क्या कहना है उसे समझना जरूरी है। काफ़ी छात्रों को यह कहते हुए सुना गया कि उनके "परिवार की माली हालत बहोत ही कमज़ोर है और इसी वज़ह से हम, JNU की कम फ़ीस के कारण यहां पढ़ पा रहे हैं। अब अगर फ़ीस को बेहिसाब या बढ़ा दिया जाएगा तो हम क्या करेंगे? हमारे परिवार की आय इतनी नहीं कि हम JNU द्वारा बढ़ाई गई फ़ीस को भर सकें। इसी वज़ह से हम अपना विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।" इस विरोध प्रदर्शन के चलते पुलिस ने छात्रों पर बुरी तरह लाठी चार्ज भी किया, जिसकी रिपोर्टिंग काफ़ी चैंनलों ने नहीं की।


कितनी सही है छात्रों की यह बात और उनका विरोध प्रदर्शन, आईये समझने की कोशिश करते हैं।



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असल में जो छात्र विरोध कर रहे हैं, उनके परिवार की माली हालत का आंकलन ख़ुद सरकार और यूनिवर्सिटी भी कर सकती है, जिसके काफ़ी तरीक़े हैं। लेक़िन मौजूदा सरकार इसपर चुप्पी साधे हुए है और यूनिवर्सिटी के वाईस चांसलर भी छात्रों से मुलाक़ात नहीं कर रहे। क्योंकि सच यह है कि यह छात्र जिन परिवारों से आते हैं उस परिवार का मुखिया या उस परिवार के कमाने वाले लोग या तो ग़रीब किसान हैं या फ़िर ऐसे लोग जो मज़दूर तबक़े के हैं। जिनकी वार्षिक आय इतनी भी नहीं कि वह सरकार को उसमें से टैक्स दे सकें, जिससे कि सरकार उस पैसे को भारत में किसी ऐसे काम में लगा सके, जिसका इस्तेमाल अमीर और ग़रीब दोनों कर पाएं।

लेक़िन क्या यह कहना ठीक होगा या इस बात का ताना मारना ठीक होगा, किसी भी ऐसे व्यक्ति के लिए को जो सरकार को टैक्स अपनी वार्षिक आय में से देने में समर्थ नहीं है, "कि तुम हमारे टैक्स के पैसे से नहीं पढ़ सकते या अमीर के टैक्स के पैसे पर ग़रीब का कोई हक़ नहीं?" तो इसपर मेरा एक छोटा सा सवाल है, कि फ़िर किसके लिए है टैक्स का पैसा? आप कहेंगे कि "टैक्स का पैसा सड़कों व इसी तरह की चीज़ों के इस्तेमाल के लिए है जिससे भारत निर्माण हो, किसी ग़रीब के लिए नहीं। ग़रीब हो तो हम क्या करें?"


अब यहां कुछ बातें समझने वाली है। 

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सबसे पहली बात यह कि JNU की फ़ीस इतनी कम क्यों है, यह समझिए पहले। JNU की फ़ीस इतनी कम इसलिए है क्योंकि वह एक सरकारी संस्थान/विश्वविद्यालय है और इसलिए खोला गया ताक़ि वहां ग़रीबों को शिक्षा प्राप्त हो सके। यहां ज़्यादातर तादात उन बच्चों की ज़्यादा है जिनके परिवार खेती - किसानी व दिहाड़ी मज़दूरी से अपनी जीविका चलाते हैं। इसी वज़ह से इन छात्रों के लिए JNU जैसी यूनिवर्सिटी उपयुक्त हैं शिक्षा प्राप्त करने के लिए। यह बात ठीक है कि वह या उनके परिवारजन सरकार को टैक्स नहीं दे पाते, लेक़िन यह बात उन लोगों की बिल्कुल ग़लत है जो इस बात को कह रहे हैं कि हमारे टैक्स के पैसे से आप शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकते! क्योंकि सरकार इन्हें बिल्कुल फ़्री शिक्षा JNU में नहीं दे रही, उनसे फ़ीस ली जाती है!

दूसरी बात यह कि इन बच्चों के परिजनों में से कोई किसान है तो कोई दिहाड़ी मज़दूर। किसान और एक दिहाड़ी मज़दूर की कितनी अहम भूमिका होती है देश निर्माण में उसका आंकलन करना भी पाप होगा। किसान से ही पूरा देश आबाद है और कैसे है, इसपर आप ख़ुद गंभीरता से विचार करना। उसके बाद भी आज किसान की बड़ी ही दयनीय हालत है, जिसके चलते देश भर में यही किसान हर साल हजारों की संख्या में आत्महत्या करने पर मज़बूर हैं। जिसपर देश के भृष्ट नेता और न्यूज़ चैनल कुछ नहीं बोलते। यह लोग आपको अन्न देते हैं खाने के लिए और ख़ुद बदहाली के कारण आत्महत्या कर लेते हैं। इन्हीं किसानों व दिहाड़ी मज़दूरों के बच्चे JNU और ऐसे ही स्कूलों में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। "फ़िर भी आज लोग इन बच्चों को ताना मार रहे हैं। जबकि यह बहोत शर्म की बात है!"

तीसरी बात अहँकार में डूबे हुए शायद वो टैक्स पेयर नहीं जानते, कि भले ही यह लोग टैक्स ना दे रहे हों और नाहीं इनके परिजन, अर्थिक तंगी की वज़ह से। लेक़िन उसके बदले इनके परिजन सरकार की ग़लत नीतियों के कारण देशभर में आत्महत्या कर रहे हैं। इसके साथ ही बहोत से छात्र अर्थिक रूप से कमज़ोर होने के चलते, अपनी शिक्षा बीच में छोड़ देते हैं और परिवार के भरण पोषण के लिए छोटी मोटी नौकरी कर लेते हैं। वहीं दूसरी ओर जिनके परिवार के बच्चे आर्थिक रूप से मज़बूत होते हैं, उनको किसी अच्छी कंपनी में नौकरी भी मिल जाती है और अच्छी तनख्वाह (Salary) भी। जिसका ज़िक्र ना तो सरकार करती है और नाहीं यूनिवर्सिटी का संचालक दल। कभी कोई रिपोर्ट यूनिवर्सिटी के माध्य्म से सामने नहीं आई, जिसमें लिखा हो या जिससे पता चलता हो कि आर्थिक तंगी की वज़ह से इतने छात्र यूनिवर्सिटी छोड़कर बीच में ही चले गए! जो की बहोत ही "शर्मनाक" वज़ह है समाज, सरकार और शिक्षा संस्थानों व JNU जैसे विश्वविध्लयों के लिए!

चौथी बात सबसे ज़्यादा शर्मनाक है, कि कुछ लोग बिना सोचे समझे या अपने निजी स्वार्थ के चलते इन छात्रों की सही बात होने के बावजूद इनकी आलोचना सोशल मीडिया के माध्य्म कर रहे हैं। जिसकी वज़ह से सरकार और यूनिवर्सिटी संचालकों का असली चेहरा दुनिया के सामने नहीं आ पाता। बाक़ी की कसर पूरी कर देते हैं भारत के न्यूज़ चैनल्स!!!

पांचवी बात, अब अगर यह ग़रीब छात्र JNU में या ऐसे ही भारत के किसी विश्विद्यालय में पढ़ना चाहते हैं जिनके परिजन इतनी कुर्बानी दे रहे हों देश के लोगों के लिए और उनके साथ हो रही नाइंसाफी पर उनका कोई साथ नहीं दे रहा हो, उसकी बजाए उनकी आलोचना कर रहा हो और उनका वाईस चांसलर भी उनसे ना मिल रहा हो, जिस वज़ह से उनको विरोध करना पड़ रहा हो और साथ ही बेहिसाब पीटना पड़ रहा हो पुलिस वालों से अपनी जायज़ मांगों के चलते, तो भी क्या JNU के छात्र ही ग़लत हैं?

छठी और आख़री बात यह, कि आर्थिक समस्याओं का शिकार कोई भी और कभी भी हो सकता है। इसलिए हमें कुछ भी बिना सोचे समझे नहीं कहना और करना चाहिए, जिससे किसी की पूरी ज़िंदगी बर्बाद हो जाये। क्योंकि सबको हक़ है अच्छी शिक्षा और अच्छी ज़िन्दगी जीने का! अगर हमारा समाज पढ़ा लिखा नहीं होगा तो देश विकास कैसे करेगा। देश की हालत पहले से ही बहोत ख़राब है, जिसे झुठलाया नहीं जा सकता!


आपको और देश के लोगों को मूर्ख बनाते कुछ न्यूज़ चैनल और सोशल मीडिया के लोग। 

बढ़ी हुई फ़ीस को लेकर JNU का विरोध प्रदर्शन october 2019 से जारी है फ़िलहाल आज 15-11-2019 तक और अभी कितने समय तक यह जारी रहेगा, इसपर कुछ भी कहना मुश्किल है। लेक़िन दिनांक 13-11-2019 यानी परसों अचानक बेहद बढ़ी हुई फ़ीस के सिलसिले में एक ख़बर सामने आई। जिसमें कहा गया कि जो फैंसला बढ़ी हुई फ़ीस को लेकर लिया गया था, उस फैंसले को वापस लिया जा रहा है और फ़ीस को उतना नहीं बढ़ाया जा रहा जिससे छात्रों को दिक़्क़त हो। मगर बात समझ नहीं आ रही थी क्योंकि न्यूज़ चैनल घुमा फिरा कर न्यूज़ दे रहे थे। साथ ही बहुत ज़ोर देकर कह रहे थे कि फ़ीस में बहुत भारी कटौती कर दी गई है दुबारा।

लेक़िन धीरे - धीरे यह सारी बात उस वक़्त साफ़ हो गई, जब प्रदर्शन कर रहे छात्रों ने ख़ुद अपने बयान दिए न्यूज़ चैनलों के माध्य्म से। उन्होंने बताया कि न्यूज़ चैनल्स और सोशल मीडिया पर लोग देश के लोगों को ग़ुमराह कर रहे हैं, फ़ीस में जो लंबी चौड़ी कटौती की बात देश के कुछ न्यूज़ चैनल कर रहे हैं वह सरासर ग़लत है और झूठी है। फ़ीस में भारी बढ़ोतरी की गई और बहुत ही मामूली कटौती, उसी बढ़ी हुई फ़ीस में करके दिखाया जा रहा है!!!

इसके बाद अचानक एक घटना और हुई। असल में ABVP (Akhil Bhartiya Vidhyarti Parishad) Union, जो भारतीय जनता पार्टी का समर्थन करती है (ऐसा कई ख़बरों में सुना गया है) और RSS यानी संघ परिवार की सदस्य है, उसने बढ़ी हुई इस फ़ीस का विरोध किया। यह बात परसों यानी 13-11-2019 की है। जैसे ही ABVP ने विरोध प्रदर्शन किया उसकी ख़बर सभी न्यूज़ चैनलों के माध्य्म से पता चलनी शुरू हो गयी। ABVP के इस प्रदर्शन को अभी सिर्फ़ दो घंटे ही हुए थे और अचानक वो ख़बर सामने आई, जिसका ज़िक्र अभी मैंने आपसे ऊपर किया। कि भारी बढ़ी हुई फ़ीस को वापस ले लिया गया है!


अब यह क्यों हुआ इसे भी समझने की ज़रूरत है। 


दरसल अभी केंद्र सरकार यानी भाजपा ने महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ हाथ मिलाकर चुनाव लड़ा और कांग्रेस से कड़ी टक्कर नहीं, बल्कि अपनी गलत नीतियों के चलते मुश्किल से जैसे - तैसे आख़िर जीत ही गयी। जिसका सबूत था कि जीत का कोई बड़ा हल्ला पार्टी नहीं कर पाई! लेक़िन भाजपा की जीतने के बाद भी इतनी बेइज़्ज़ती हो रही है इस दौरान, जितनी किसी पार्टी की हारने के बाद भी नहीं होती। 

क्योंकि जीतने के बाद दोनों पार्टियों में काफ़ी कहा सुनी हो गई, इस बात को लेकर कि महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री किसका होगा। भाजपा कह रही है कि हमारा नेता होगा यानी Devendra Fadnavis और शिवसेना कह रही है कि हमारा होगा यानी Aditya Thackeray! इसको लेकर काफ़ी किरकिरी भाजपा की हो रही है भारत में। भाजपा को नहीं पता शायद कि कैसे Damage Control किया जाए।

अब दिल्ली में भाजपा का समर्थन करने वाली छात्र यूनियन ABVP भी विरोध प्रदर्शन कर रही है और देश की जनता की नज़रों में जाने अनजाने पार्टी की और छवि ख़राब ना हो जाये, इसलिए लगता है कि तुरंत यह फ़ीस कटौती की बात सामने आई। हालांकि फ़ीस पूरी तरह से उसी पैटर्न पर वापस नहीं ली गई है, लेक़िन लगता है अचानक पूरी तरह से फ़ीस उसी पैटर्न में लाने से JNU और केंद्र सरकार भाजपा की बात ख़राब हो सकती है। इसलिए शायद फ़ीस उसी ढर्रे पर कुछ अंतराल के बाद आ जाये।

(आख़िर में यही कहूंगा कि छात्र JNU का हो या कहीं का भी, उसके ऊपर लाठीचार्ज करना ग़लत है। छात्र विरोध प्रदर्शन कर रहे थे, ग़लत बात का विरोध कर रहे थे ना की किसी को मार रहे थे। और एक बात हमेशा याद रखिएगा, कि यह लोग फ़्री में नहीं पढ़ रहे और जो क़ीमत यह छात्र और इनके परिवार चुका रहे हैं उसकी कल्पना भी करना मुश्किल है। यह बात मैं पहले भी कर चुका हूं।)

(JNU के छात्र प्रदर्शन करने सड़कों पर तब आये, जब लगातार उनके यानी छात्रों के आग्रह करने के बाद भी उनकी परेशानियों को सुनने व समझने के लिए JNU के Vice Chancellor उनसे नहीं मिले।)

(विरोध प्रदर्शन के दौरान जो नए आरोप उनके ऊपर 13-11-2019 से मढ़े जा रहे हैं कि उन्होंने स्वामी विवेकानंद जी की प्रतिमा के ऊपर कुछ लिख दिया है या उससे छेड़छाड़ की है और यूनिवर्सिटी परिसर में या कहीं भी। तो उसपर छात्रों ने पहले ही साफ़ तौर पर कह दिया है कि उन्होंने नारे लिखें हैं जो उनकी मांगों को दर्शाते हैं लेक़िन स्वामी विवेकानंद जी की प्रतिमा पर नहीं। क्योंकि आपको बता दें कि इससे पहले भी JNU के स्टूडेंट्स को एक Edited वीडियो के आधार पर बदनाम किया गया था।)

(भाजपा व देश के कुछ न्यूज़ चैनलों को पता नहीं क्यों इतनी दिक़्क़त है JNU के छात्रों से समझ नहीं आता। जबकि भाजपा को शर्मिंदगी होनी चाहिए कि जो उन्होंने दो करोड़ रोज़गार हर वर्ष देने की बात कही थी, वो तो दे नहीं पाई, उल्टा उनकी शिक्षा के पीछे पड़ी हुई है। JNU क्यों राजनीति में घसीटा जा रहा है यह तो मैं साफ़ तौर पर नहीं कह सकता, लेक़िन यह ज़रूर कह सकता हूं कि भारत में मौजूदा हालात को देखते हुए बेरोज़गार और युवाओं के लिए ज़िन्दगी की राह बेहद कठिन है!)

Tuesday, November 12, 2019

Ayodhya विवाद, ख़त्म या शुरू?

Ayodhya विवाद, ख़त्म या शुरू? 

Embed from Getty Images (क्योंकि यह एक बहुत ही संवेदनशील मामला है, इसलिए मैं अपनी "निजी" राय रखने से पहले "भारत की माननीय उच्चतम न्यायालय व सभी आदरणीय जजों" के समक्ष एक निवेदन करना चाहता हूं। कि जो भी मैं आगे अपने ब्लॉग में लिख़ने जा रहा हूं, वो सिर्फ़ मेरी अपनी निजी राय है। इसलिए अगर मुझसे किसी प्रकार की त्रुटि हो जाए तो मुझे कृप्या माफ़ करने की कृपा करें। धन्यवाद।)

इसी के साथ अब मैं अपनी बात आपके सामने रख़ता हूं। (मैं लंबी चौड़ी डिटेल में अपनी बात नहीं रखूँगा, बस जो मेरे दिल में है। उसे आपके सामने रखूँगा।)

माननीय न्यायालय ने तारीख़ 09 नवंबर 2019 को सुबह के वक़्त एक बहोत बड़ा फैंसला सुनाया। जो अयोध्या के विषय में था। उसमें विवादित जगह हिन्दू समुदाय के लोगों को दे दी गई और अयोध्या में ही कहीं और 5 एकड़ जमीन दूसरे समुदाय यानी मुसलमानों को दे दी गई। जिसपर राजनीति बड़े लंबे समय से चली आ रही थी और अब फैंसला आने के बाद भी थमती हुई नहीं दिख रही। 



असल में, जिस दिन फैंसला आया उसी दिन सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के वक़ील "Zafaryab Jilani" ने पत्रकारों से एक छोटी सी भेंटवार्ता की। जिसमें उन्होंने कहा, कि हम सुप्रीम कोर्ट का और उसके हर फैंसले का सम्मान करते हैं। लेक़िन हम इस फैंसले से संतुष्ट नहीं हैं! लेक़िन "Personally" मुझे "Zafaryab Jilani"  साब की यह बात ठीक नहीं लगी। हालांकि हर आदमी को स्वतंत्रता है अपनी बात व राय रखने की, लेक़िन यहां जिलानी साब की यह बात मन में शंका पैदा करती है।

क्योंकि वे दो बातें कर रहे हैं! पहली यह, कि जिलानी साब कह रहे हैं कि वे सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करते हैं और दूसरी यह कि वह फैंसले से नाख़ुश हैं। और यह दो अलग - अलग बातें हैं। जब आप कोर्ट का सम्मान करते हैं तो उसके फैंसले का भी सम्मान करना चाहिए और संतुष्ट भी होना चाहिए। अगर हम फैंसले से ही संतुष्ट नहीं हैं, तो हम कैसे कह सकते हैं कि हम कोर्ट का सम्मान करते हैं! यानी कि यह सिर्फ़ कहने के लिए है, कि हम कोर्ट का सम्मान करते हैं। (क्योंकि सुप्रीम कोर्ट कोई व्यक्ति विशेष नहीं है, जिसका आप सम्मान तो करते हों लेक़िन उसके किसी एक फैंसले से संतुष्ट ना हों। इसके अलावा भारत में सर्वोच्च न्यायालय का फैंसला ही अपने आप में एक पूर्ण विराम है, जिसके आगे और कुछ नहीं! इसलिए हमें न्यायालय का पूरा सम्मान करते हुए उसके फैंसले को भी मानना चाहिए।)

एक बात और भी फैंसला आने से पहले लगातार सुनी जा रही थी दोनों पक्षों (यानी हिन्दू और मुसलमानों) की ओर से कि फैंसला जो भी आए, जिसके भी पक्ष में आए, उसे सब पूरी इज़्ज़त के साथ क़बूल करेंगे। लेक़िन यहां तस्वीर कुछ और ही बनी हुई है। जिलानी साब सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड यानी मुस्लिम समुदाय के पक्ष में कोर्ट में पैरवी कर रहे थे और अगर जिलानी साब ही यह कहेंगे, कि वह संतुष्ट नहीं हैं तो मुसलमानों पर भी इसका असर ग़लत पड़ेगा!


इसके बाद एक और बयान आया "Asaduddin Owaisi" साब का। उन्होंने भी कुछ इसी तरह की बात की। उनका कहना है कि "मैं भी सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करता हूं, लेक़िन इस फैंसले में कोर्ट ने जो 5 एकड़ जमीन देने की बात की है। उसकी हमें ज़रूरत नहीं है।"



इसके बाद बयान आया, "UP Sunni Central Waqf Board" के चेयरमैन श्री "Zufar Faruqi" का। जिसमें उन्होंने कहा, कि "हम कोर्ट के फैंसले का पूरा सम्मान करते हैं और हम किसी भी प्रकार की बात इस फैंसले को लेकर कोर्ट से नहीं करेंगे। हम इस फैंसले का स्वागत करते हैं और इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा, कि जो भी मुस्लिम समुदाय का व्यक्ति कोर्ट के फैंसले से असंतुष्ट है या जो भी कह रहा है। वह उसकी अपनी निजी राय है, उससे हमारा कोई लेना देना नहीं।" यह बात उन्होंने Zafaryab Jilani और Asaduddin Owaisi के बयान पर कही।

उन्होंने यह बात भी कही, कि "हम ख़ुद मुस्लिम समुदाय का नेतृत्व करते हैं और हमारे लोग हमसे जुड़े हुए हैं यानी मुस्लिम समुदाय के लोग। हम सभी कोर्ट के फैंसले का सम्मान करते हैं और जो भी फैंसला आया है वह हम सब को मंज़ूर है।" Zufar Faruqi साब की इस बात से लगा, कि चलिए दोनों पक्षों के लोगों में अब इस बात को लेकर आगे भविष्य में कोई बात नहीं होगी और देश में चले आ रहे इस सदियों के विवाद से आम आदमी को हमेशा के लिए निजाद मिल गई।



मग़र अचानक अगले दिन यानी 10 नवंबर 2019 को शाम क़रीब सात बजे, उप्र सेंट्रल सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के वही चेयरमैन Zufar Faruqi जिनका अभी मैंने ज़िक्र किया, वे अपने "इतने बड़े बयान से पलट गए।" और बोले कि 26 नवंबर 2019 को हम एक बैठक करेंगे, जिसमें हम विचार करेंगे कि हम कोर्ट के फैंसले पर कोई अपील या अपनी असहमति कोर्ट में दर्ज कराएं या नहीं! (असल में Zufar Faruqi का कहना है, कि उप्र सेंट्रल सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड हिंदुओं को दी जाने वाली उस जगह का विरोध नहीं कर रहा, बल्कि जो 5 एकड़ की जगह मस्जिद बनाने के लिए अयोध्या में कहीं और दी गई है, उसे ले या ना ले इसपर वह यानी बोर्ड मेंबर बैठक में विचार करेंगे।)

इसी वज़ह से मेरे मन में शंका आयी। क्योंकि मैं तो सिर्फ़ Zafaryab Jilani साब के बयान से परेशान था, कि कितना बुरा संदेश वो अपने लोगों को दे रहे हैं। जबकि फैंसला आने से पहले सब यही कह रहे थे, कि जो भी फैंसला आए सबको मंज़ूर होगा। और यहां तो सिर्फ़ जिलानी साब ही नहीं, बल्कि ओवैसी और ज़ुफर फ़ारूक़ी भी जिलानी साब की तरह कोर्ट के फैंसले पर सवाल खड़ा कर रहे हैं।

मुझे इन तीनों के बयानों में राजनीति और धर्म की दुकान चलाने वालों की साजिश नज़र आती है। क्योंकि जिलानी साब वक़ालत कर रहे थे मुस्लिम समुदाय के लिए जिनको किसी ने तो कहा होगा, कि जिलानी साब मुकदमा लड़ो हमारी बात की ख़ातिर। ओवैसी साब भी एक नेता हैं और फैंसला आने के बाद हो सकता है कि राजनीतिक गलियारे में उनकी पकड़ मुस्लिम समुदाय में कमज़ोर ना पड़ जाए, इसलिए वे इस बात को तूल दे रहे हो। और मुस्लिम समुदाय से सिर्फ़ ओवैसी ही नहीं हैं अकेले, तमाम नेता हैं जो मुस्लिम समुदाय में अपनी अच्छी पहचान रख़ते हैं और पकड़ रख़ते हैं। उन सबको कहीं न कहीं यही लग रहा होगा कि कहीं हमारे मुस्लिम समुदाय के लोग नाराज़ ना हो जाएं और हमें भविष्य में कोई दिक़्क़त ना हो जाए, चुनाव के वक़्त!

अब आख़िर में रही बात Zufar Faruqi साब की  जो उप्र सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के चैयरमैन हैं, उनका अचानक अपने बयान से पलटना साफ़ ज़ाहिर करता है कि मुस्लिम धर्म के नाम पर राजनीति और अपनी दुकान चलाने वाले मुस्लिम नेता और धर्मगुरु इस मामले का राजनीतिकरण कर रहे हैं और करना चाहते हैं। वरना उनकी नेतागिरी और दुकानें बंद हो जायेंगीं! इसके साथ - साथ मैं यह भी साफ़ कर दूं कि यह दिक़्क़त सिर्फ़ मुस्लिम समुदाय के लोग नहीं झेल रहे, बल्कि हिन्दू समुदाय के लोग भी झेल रहे हैं। अगर फैंसला हिंदुओ के पक्ष में नहीं आता, तो हिन्दू धर्म के नाम पर राजनीति करने वाले नेता और धर्मगुरू भी यही करते।

इन सभी बातों को देखते हुए, फ़िलहाल यह तो साफ़ है कि यह नेता अभी इस मामले को मुद्दा बनाए रखेंगे और अपनी राजनीति की दुकानें चलाते रहेंगे। अगर यह मामला निपट भी जाए तो भी बहुत सारे मामले हैं, जिन्हें मुद्दा बनाकर अभी काफ़ी और दशकों तक हिन्दू - मुसलमान को आपस में लड़वाकर यह लोग अपनी राजनीति कर सकते हैं।

कभी आपने सोचा या फ़िर कभी ज़रा सी देर के लिए भी यह ख़याल आपके दिमाग़ में आया, कि यह सब आख़िर कब और कैसे रुकेगा? कब तक आख़िर यह नेता देश के हिन्दू और मुसलमानों को ऐसे ही लड़वाते रहेंगे?

ईसपर मैं यह कहना चाहता हूं, कि इसमें सबसे बड़ी ग़लती हमारी ख़ुद की है। जिसमें हिन्दू भी हैं और मुसलमान भी। इन नेताओं के उकसावे में और इनकी बातों में हम ही तो आ जाते हैं। क्यों हैं हम इतने कमज़ोर? क्या हमारे अंदर इतनी भी सोचने और समझने की ताक़त नहीं, कि हक़ीक़त क्या है इन लालची नेताओं और धर्मगुरुओं की? क्या भगवान या हमारे ख़ुदा ने हमारे साथ धोखा किया है, जो सिर्फ़ सोचने के लिए दिमाग़ इन नेताओं और  इन धर्मगुरुओं को दिया है लेक़िन हमें नहीं!?

ऐसा नहीं है, हमारा ईश्वर और हमारा ख़ुदा हमारा दुश्मन नहीं है। उसने हम सबको अक़्ल दी है सोचने के लिए। मगर हमारे दिमाग़ पर दशकों से चलीं आ रहीं हिन्दू - मुस्लिम की बातें इतनी हावी हो चुकी हैं, कि हमने कभी इन बातों से कैसे निकला जाए उस बात को सोचना ही छोड़ दिया है। और यक़ीन मानिए, हमारी यह लापरवाही, यह आदत और यह हरक़त इतनी ख़तरनाक़ और जानलेवा है कि आपको इस बात का अंदाज़ा तब होगा, अगर किसी रोज़ किसी नेता या धर्मगुरु की वज़ह से आपकी जान ख़तरे पड़ेगी। जिस तरह रोज़ देश भर के ग़रीब इनकी राजनीति की भेंट चढ़ते हैं।

यह सभी राजनीति, हमारी बर्बादी और देश की बर्बादी तभी रुकेगी जब हम आपस में लड़ना छोड़ देंगे। आज आप लोग ख़ुद देख सकते हैं, कि अयोध्या पर फैंसला आने से पहले ही पूरे देश के सभी स्कूल बंद करा दिए गए, क्यों? ताक़ि हम लोगों ने जो नफ़रत अपने दिलों में पाल रखी एक दूसरे के लिए, वो कहीं ख़ून ख़राबे ना बदल जाये। क्यों सब डरे हुए थे? इसलिए क्योंकि सब जानते थे, कि सबने एक दूसरे के लिए अच्छा नहीं बुरा सोचा है। इसलिए क्योंकि हिन्दू मुसलमान को और मुसलमान हिन्दू को रोज़ सोशल मीडिया पर उल्टा सीधा बोल रहा है। टीवी चैनलों पर डिबेट्स में एक दूसरे के धर्म पर सवाल खड़े किये जा रहे हैं। सड़कों पर एक आदमी को घेरकर मार रहा है। और यह सब कौन कर रहा है और किसके उकसावे में? यह सब कर रहा है हिन्दू मुसलमान के साथ और मुसलमान हिन्दू के साथ, सिर्फ़ नेताओं और ढोंगी धर्मगुरुओं के उकसावे में!!

आगर हम इन नेताओं और धर्मगुरुओं के उकसावे ना आएं और एक दूसरे की इज़्ज़त करें और हर लिहाज़ से,  तो यह सब लड़ाई झगड़ा ख़त्म हो जाएगा! नहीं तो अयोधया का यह विवाद यह समझ लीजिए कि ख़त्म  नहीं, यहां से शुरू हुआ है!

Friday, November 8, 2019

"Ayodhya" पर फैंसला क़रीब। रखें इन बातों का ख़याल।

"Ayodhya" पर फैंसला क़रीब। रखें इन बातों का ख़याल। 



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दशकों से चल रहे "Ayodhya विवाद" मामले पर भारत की माननीय उच्च न्यायालय संभवता अब से कुछ दिन उपरांत फैंसला सुना सकती। उम्मीद है, दिनांक 13 से 16 नवंबर 2019 के बीच इसपर फैंसला आ जाए। इसके मद्देनज़र अयोधया में धारा 144 लगा दी गई। इसके साथ ही पूरे उत्तर प्रदेश राज्य में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था भी कर दी गई है। देश के अन्य राज्यों को भी हाई अलर्ट पर रखा गया है, ताक़ि कोई भी देश के माहौल को ख़राब ना कर पाए। 

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी, उप्र मुख्यमंत्री योगी  आदित्यनाथ, प्रशासन व सभी धर्म के धर्मगुरुओं ने सभी से शांतिपूर्ण माहौल बनाए रखने की अपील की है। विशेष रूप से सभी धर्मगुरुओं ने अपने व दूसरे धर्म के लोगों से कहा है, कि फैंसला किसी के भी पक्ष में आये, उसे सबको सम्मानपूर्वक अपनाना है और इस भारत देश की गंगाजमनी तहज़ीब को ऐसे  ही बनाये रखना है। 



रखें इन बातों का ख़याल। 


किसी से भी अयोध्या मामले व फैंसले को लेकर वाद-विवाद ना करें। 

किसी भी "Forwarded" भड़काऊ मेसेज को किसी के भी साथ शेयर करने से बचें अथवा बिल्कुल भी ना करें। (क्योंकि आपको भेजा हुआ Message या न्यूज़ fake भी हो सकती है।) 

बर सही है या ग़लत उसे चेक करने लिए किसी  Official News Websites पर ही भरोसा करें। 

सभी सोशल मीडिया साइट्स और एप्प्स पर प्रशासन द्वारा कड़ी नज़र भी रखी जाएगी, ताक़ि फ़ौरन प्रशासन उसपर करवाई कर सके। 

किसी भी तरह का वीडियो या फ़ोटो सोशल मीडिया पर अपलोड व शेयर ना करें, जो किसी के भी धर्म का अपमान करता हो या फ़िर किसी की भावना को आहत करता हो। 

फैंसला किसी भी पक्ष के हक़ में आये, उसपर कोई भी पक्ष अपनी ख़ुशी का इज़हार इस तरह ना करे, जिससे दूसरे धर्म को ग़लत संदेश जाए। 


(कुल मिलाकर आपको कुछ भी ऐसा नहीं करना है, जिससे वाद विवाद हो।) 

Wednesday, November 6, 2019

"Delhi Air Pollution" क्या हैं समस्याएं और क्या हैं उपाय।

"Delhi Air Pollution" क्या हैं समस्याएं और क्या हैं उपाय। 


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देश की राजधानी दिल्ली यूं तो "Air Pollution" की वज़ह से पूरे साल ही ग्रस्त रहती है। लेक़िन सर्दियों के मौसम में हवा बहुत बुरी तरह से प्रदूषित हो जाती है, जिसका कारण है हवा में नमी। नम हवा भारी व शहर के निचले स्तर पर होती है और यह प्रदूषित हवा को वायुमंडल में जाने से रोकती है। जिस वज़ह से रोज़ पूरे दिन का शहरी प्रदूषण, पिछले दिनों के इकट्ठे हुए प्रदूषण में मिल जाता है और प्रदूषण की मात्रा दिन व दिन बढ़नी शुरू हो जाती है। इसी कारण शहर दूषित हवा का चेंबर बन जाता है। यह प्रकिया अक्टूबर महीने से शुरू होकर मार्च तक चलती है और यही कारण है, कि दिल्ली के लोगों का जीना मुश्किल हो गया है। 

लेक़िन सर्दियां और यह नम हवा तो कोई नई बात नही है। दुनिया में हर जगह गर्मियां भी पड़ती हैं और सर्दियां भी। नम हवा भी रहती है और गर्म हवा भी। तो फ़िर क्यों हो रही है यह दिक़्क़त? क्यों दिल्ली के बच्चे, जवान और बूढ़े इतनी जानलेवा स्थिति में हैं? क्यों सरकारें चुप हैं? चलिए समझने की कोशिश करते हैं इस मामले को। 

सबसे पहले तो देश के हर नागरिक को यह समझ लेना चाहिए कि "Air Pollution" सिर्फ़ "Delhi" में  ही नहीं है! बल्कि यह दिक़्क़त उन सभी छोटे - बड़े शहरों में है, जो मैदानी इलाकों में आते हैं। जैसे दिल्ली, कानपुर, आगरा, लखनऊ, वाराणसी, हरियाणा आदि। असल में, पिछले बीस से पच्चीस सालों में जिस पैमाने पर पेड़ों को काटा गया है और पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ की गई है, यह सब उसका ही नतीजा है। तमाम सरकारों ने सड़कों व विकास कार्यों के नाम पर जिस तरह से पेड़ों की कटाई की, यह सोचे बिना कि इसके कितने भीषण परिणाम हो सकते हैं भविष्य में, यह सब उसकी देन है। 

यहां तक की कटान के पेड़ों का इस्तेमाल नेताओं और सरकारी कर्मचारियों ने अपनी जेबों को भरने के लिए किया होगा, यह भी बहुत हद तक मुमकिन है। इस वज़ह से भी कटान जितना ज़रूरी होगा करना, उससे भी कहीं गुना ज़्यादा कटान किया गया होगा और आज भी यह सब जारी है! इसपर लगाम कोई नहीं लगा सकता फ़िलहाल, क्योंकि भारत के राजनेता किस मानसिकता के होते हैं, यह सभी जानते हैं। जिस वज़ह से जिनको इस बात की जानकारी होगी भी, वह लोग भी ख़ुद किसी दिक़्क़त में ना पड़ जाए इसलिए ना तो विरोध करते हैं और नाहीं इसकी कंप्लेंट! लेक़िन यह घोटाला भी काम की आड़ में ही होता है! उदाहरण के तौर पर: मान लीजिए कि किसी शहर को सड़क की ज़रूरत है, शहर के अंदरूनी या बाहरी क्षेत्र में। उसको बनाते वक़्त अगर रास्ते में पेड़ या पर्यावरण से संबंधित कोई भी चीज़ आती है, तो उसे काटना व हटाना ही पड़ेगा। यह बात तो अलग है कि उस कटे या हटे हुए सामान से नेताओं ने अपनी जेबों को भरा होगा। सड़क, फैक्ट्री, इंडस्ट्री आदि तो हमें चाहिए ही है ना! 


यहां खड़ा होता है सबसे बड़ा सवाल। कि क्या ज़रूरत है इतनी सड़कों की और बाक़ी संसाधनों की? तो जवाब बड़ा ही सीधा है। और वह है यह कि उसकी ज़रूरत जनता को ही तो है! चलिए, इसे भी थोड़ा आसान भाषा में समझते हैं। 


असल में इन सबकी जड़ है, बढ़ी हुई और बढ़ती हुई "जनसंख्या*" यानी "Population*". असल में हर इंसान की ज़रूरत लगभग एक जैसे ही होती है। उनकी पूर्ति करने के लिए, फ़िर उस तादाद में उन वस्तुओं का उत्पादन भी किया जाता है। भारत की इतनी बड़ी जनसंख्या के लिए उत्पादन करने में कारखानों से वायुमंडल भी प्रदूषित होता है, फ़िर उस सामान को आप तक पहुंचाने में भी कई प्रकार की चीज़ों का सहारा लेना पड़ता है। उनसे भी भयंकर प्रदूषण वायुमंडल में इकट्ठा होता है। आपके पास पहुंचने के बाद आप उसे इस्तेमाल करते हैं, उसमे भी प्रदूषण होता है। इस्तेमाल करने के बाद हम उस सामान को फ़ेक देते हैं कोड़ेदान में, जब तक उस सामान को नगर निगम की गाड़ी नहीं लेकर जाती, वह भी हवा को प्रदूषित करता है। आख़िर में भारत के कुछ एक भृष्ट अधिकारियों और नेताओं के चलते, वह बेकार कचरा भी शहर के बाहरी क्षेत्रों में डाल दिया जाता है। वह कूड़ा महीनों वायुमंडल को प्रदूषित करता रहता है!!! (यहां तक हमने मोटे तौर पर यह समझा कि लोगों की बढ़ती हुई ज़रूरतों और उसके चलते संसाधनों के इस्तेमाल के कारण वायुमंडल किस तरह प्रदूषित होता है और साथ ही वायुमंडल में ज़हरीली हवा से लड़ने के लिए प्रकृति जिन पेड़ों का इस्तेमाल करती है, उनको क्यों काटा गया और उनका कैसे मुनाफ़े के लिए इस्तेमाल भी किया गया।) 



अब समस्या क्या - क्या हैं? उनपर भी एक नज़र डाल लेते हैं। 


पहली और सबसे बड़ी समस्या है, "बढ़ी हुई जनसंख्या" और उस जनसंख्या की पूर्ति करने के लिए इस्तेमाल होने वाले संसाधन। तो यह सबको समझना होगा कि जनसंख्या को अचानक कम नहीं किया जा सकता और नाहीं सभी प्रकार के और संसाधन बंद किए जा सकते हैं, जो इतनी बड़ी जनसंख्या के लिए इस्तेमाल होते हैं। 

दूसरी समस्या है, भारत के भृष्ट नेता और अधिकारी। जैसा आप सब भी जानते हैं कि नेताओं और भृष्ट सरकारी अधिकारियों के ख़िलाफ़ कोई भी क़दम उठाना आम आदमी के बस की बात नहीं। क्योंकि एक अकेला या कुछ लोगों का समूह (Group) भी इन भृष्ट नेताओं और अधिकारियों का कुछ नहीं बिगाड़ सकता। उसकी वज़ह यह है कि यह नेता और अधिकारी शिकायतकर्ता (कंप्लेंट करने वाला) को ही किसी झूठे मामलें में फांस देंगे। इसलिए इनका भी कोई इलाज़ नहीं है। 

तीसरी समस्या है, कि भारत के लगभग सभी न्यूज़ चैनल व समाचार एजेंसियां इस मामलें पर अपनी गम्भीरता नहीं दिखा रहीं। जिस वज़ह से भी यह प्रदूषण की समस्या कम नहीं हो रही है। आपको यह बात कुछ अज़ीब लग रही होगी, कि न्यूज़ चैनल व समाचार एजेंसियां तो पूरे दिन इस विषय पर बात कर रहीं हैं। तो फ़िर हम क्यों इस बात को कह रहे हैं कि न्यूज़ चैनल व समाचार एजेंसियां इस पर गम्भीर  नहीं हैं? 
दरअसल न्यूज़ चैनल, न्यूज़ एंकर्स, न्यूज़ रिपोर्टर और समाचार एजेंसियां आपको यह बता रहीं हैं, कि आज दिल्ली में इतना "Pollution" है और अन्य शहरों में इतना। साथ ही लोगों से जगह - जगह जाकर उनसे प्रदूषण पर आपको प्रतिक्रिया लेते हुए दिखा रहीं हैं। लेक़िन यह सब एक छल है, जो देश के लोगों के साथ किया जा रहा है।

हम यह बात इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि प्रदूषण कहां पर कितना है यह पूछने से या लोगों को इस प्रदूषण से क्या - क्या दिक्कतें हो रहीं हैं यह पूछने से, प्रदूषण कम नहीं होगा और ना-हीं लोगों की दिक्कतें दूर होंगी। यह दिक्कतें जैसा हमने आपसे पहले कहा कि अचानक दूर नहीं हो सकतीं, इसलिए इनमें कमी लाने के लिए देश के ज़िम्मेदार लोगों यानी नेताओं को कटघरे में खड़ा करना पड़ेगा। यही नेता यानी जो सत्ता में हैं या जो मौजूदा सरकार को चला रहे हैं, उनसे सवाल जवाब किया जाए, जिसकी ज़िम्मेदारी है इन्हीं न्यूज़ चैनलों व सभी समाचार एजेंसियों की। लेक़िन यह न्यूज़ चैनल्स, उनके एंकर्स, न्यूज़ रिपोर्ट्स और सभी समाचार एजेंसियां नेताओं को कटघरे में नहीं खड़ा करतीं। 

नेताओं से यह एजेंसियां बड़े ही मुलायम अंदाज़ में बात करतीं हैं, जो सरासर एक मज़ाक है देश के लोगों के साथ। इन्हें वही कड़ा रुख़ अपनाना चाहिए नेताओं के साथ भी, जो रूख़ यह एजेंसियां एक आम आदमी पर अपनाती हैं। वही रुख़ अपनाना चाहिए इन्हें, जो एक हत्यारे के लिए अपनाती हैं! क्योंकि यह देश के लोगों की ज़िंदगी का सवाल है। मगर यह भी मुमकिन नहीं है, मैं जानता हूं। इसलिए ही भारत में पत्रकारिता का स्तर अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुका है। 

अगर यह एजेंसियां ईमानदारी से अपना काम करतीं, तो भी बहुत हद तक इस प्रदूषण पर नियंत्रण पाया जा सकता था। 
अब आप समझ ही गए होंगे कि असली समस्या क्या है और कौन है इस समस्या के लिए कितना ज़िम्मेदार। 


अब किया क्या जाए इस समस्या से निकलने के लिए इन सभी बातों को देखते हुए? तो इस समस्या से निपटने के लिए सबसे पहले देश के लोगों को यह चाहिए कि कुछ भी ऐसा ना करें, जिससे प्रदूषण बढ़ता हो। यानी बेकार में उन चीज़ों और उन संसाधनों का इस्तेमाल ज़रूरत से थोड़ा सा भी ज़्यादा ना करें, जिसकी वज़ह से प्रदूषण हो। रही बात बढ़ती हुई जनसंख्या की तो उस पर लोगों को ही समझदारी से सोचना होगा। क्योंकि जनसंख्या नियंत्रण में तब ही आएगी जब लोग इससे होने वाले नुकसान को समझेंगे! 



(आख़िर में इन सभी बातों को देखते हुए इतना ही कहा जा सकता है कि यह एक बहुत लंबी लड़ाई है और बदकिस्मती से यह लड़ाई देश के लोगों को अकेले ही लड़नी होगी। वरना देश पूरी तरह से बर्बाद हो जाएगा इन भृष्ट नेताओं, भ्रष्ट समाचार एजेंसियों और बढ़ती हुई जनसंख्या की वज़ह से। क्योंकि जब देश के बच्चे और युवा ही बीमारी का शिकार हो जाएंगे, तो देश आबाद कैसे रह पाएगा!)

*(कृप्या ध्यान दें: हमने आपसे अपने इस ब्लॉग में भारत की बढ़ती हुई "जनसंख्या" की बात की है, जिसमें हम साफ़ कर दें कि हमने किसी भी व्यक्ति, विशेष, वर्ग या धर्म को उसके लिए ना तो ज़िम्मेदार ठहराया है और नाहीं किसी को इसके लिए दोषी ठहराया है। साथ ही ना किसी धर्म को निशाना बनाया है। हमारा उद्देश्य आपको यह बताना था इस ब्लॉग के माध्यम से, कि इस बढ़ी हुई जनसंख्या का कितना बड़ा दुष्प्रभाव भारत की अर्थव्यवस्था पर और लोगों के दैनिक जीवन पर पड़ रहा है। इस बढ़ी हुई जनसंख्या के लिए सभी धर्म के लोग समान रूप से ज़िम्मेदार हैं, जिन्होंने परिवार नियोजन को नहीं समझा।) 

Sunday, November 3, 2019

ISIS सरगना "Abu Bakr al-Baghdadi" की मौत पर संदेह क्यों!?

ISIS सरगना "Abu Bakr al-Baghdadi" की मौत पर संदेह क्यों!?...


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सबसे पहले आपको यह बता दें, कि आख़िर कौन था यह बग़दादी और कितना ज़ालिम और ख़तरनाक़ था यह अब तक का सबसे बड़ा आतंकी। जिसने अपनी हैवानियत के चलते "Osama Bin Landen" को भी कहीं पीछे छोड़ दिया। (कृप्या ध्यान दें कि आतंकी "Baghdadi" से जुड़ी सभी बातें जो नीचे  लिखी, बताई और दिखाई गयीं हैं, वो कुछ लोगों को विचलित कर सकती हैं।) 


ISIS एक संगठन है, जिसको (Islamic State of Iraq and al-Sham/Daesh/Islamic State) भी कहा जाता है। उसका मुख्य सरगना Abu Bakr al-Baghdadi जिसका असल नाम Ibrahim Awad Ibrahim al-Badri al-Samarrai था, साल 2010 में इस संगठन आईएस-आईएस की कमान संभाली थी।

साल 2014 में Baghdadi ने एक छोटा सा वीडियो जारी किया, जिसमें उसने दुनिया के सभी मुसलमानों से अपील करते हुए कहा, "मैं दुनिया के सभी  मुसलमानों से अपील करता हूं कि वे सब मेरा साथ दें और मेरे साथ शामिल हों। अगर उनको लगे कि मैं ठीक हूं तो मेरी मदद करें और उनको अगर लगे कि मैं कुछ ग़लत कर रहा हूं, तो मुझे बताएं।" 

इसके बाद बग़दादी ने सिलसिलेवार ठंग से मासूम बच्चों से लेकर उम्रदराज़ लोगों के साथ - साथ जवानों को मारना शुरू कर दिया। बग़दादी बहुत बेरहमी के साथ एक साथ लोगों को इकट्ठा करता और उनको मार देता, साथ ही उसका वीडियो बनाकर उसके लड़ाके सोशल मीडिया पर कई प्लेटफॉर्म्स पर अपलोड कर देते थे। बग़दादी सिर्फ़ एक ही बार कैमरे के सामने देखा गया, जो उसके लड़ाकों ने साल 2014 में फिल्माया था। उसके बाद उसे कभी भी और किसी भी माध्य्म से उसके बाद नहीं देखा गया। 

लोगों की जानें उसके लड़ाके लोगों के सिर में गोली मारकर और उनकी गर्दन काटकर लेते थे। इस हैवानियत को सोशल मीडिया पर देखकर दुनिया भर के बड़े - बड़े देश कांप गए। वहीं दूसरी ओर, इससे काफ़ी बड़ी संख्या में पूरी दुनिया के नौजवान प्रभावित भी हुए और इसके चलते वह सब ISIS में शामिल हो गए। जिसमे ज़्यादातर मुस्लिम समुदाय से थे। इतना ही नहीं, इन नौजवानों में काफ़ी बड़ी संख्या में पढ़े लिखे और बहुत क़ाबिल नौजवान भी थे। 

Embed from Getty Images Baghdadi के हुक़्म के चलते उसके लड़ाकों ने  बड़ी संख्या में "Yazidi*" मर्दों को एक साथ हज़ारों की संख्या में मार दिया। इन सभी की हत्या बग़दादी के लोगों ने  एक - एक यज़ीदी नौजवान और मर्द के सिर में गोली मारकर साल 2014 के मध्य में की। इसके अलावा यज़ीदी महिलाओं और बच्चियों का अपहरण कर उनका इस्तेमाल दुष्कर्म के लिए करना और उन्हें बेचे जाने वाला जैसा आपराधिक काम भी  बग़दादी के संगठन में शामिल था। जो की, सीधे तौर पर "Human Rights" के कानूनों का सीधा उलंघन करता था। जिसके चलते यज़ीदी समुदाय के लोगों ने Washington DC में प्रदर्शन किया और यह सब रोके जाने की मांग व गुहार लगाई। *(Yazidi समुदाय के लोग असल में क़ुरान और बाइबल दोनों को मानते हैं। यह समुदाय एक ग़लतफ़हमी की वज़ह से सदियों से दबता आया है मुस्लिम समुदाय से। कट्टरपंथी मुसलमानों के हिसाब से यह समुदाय एक शैतान की उपासना करते हैं, जबकि ऐसा नहीं है। मगर उस ग़लतफ़हमी के चलते इनपर बेहद ज़ुल्म किया गया, पहले भी और बग़दादी द्वारा ज़्यादा!) 



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Baghdadi के लड़ाकों ने विदेशी लोगों को ख़ास तौर पर अपना निशाना बनाया, क्योंकि उसका (Baghdadi) असल मक़सद ही दुनिया के सभी देशों के ग़ैर मुस्लिम समुदाय के लोगों को मारना था। जिसमें James Foley, Steven Sotloff, David Haines भी शामिल थे। इन सभी की गर्दन काटकर हत्या की गई, जिसके लिए बग़दादी ने अपना एक विशेष लड़ाका चुना। इसका असल नाम "मोहम्मद इम्वाज़ी" (Mohammed Emwazi) था, जिसे "Jihadi John" भी कहा जाता था। जिहादी जॉन इसलिए कहा जाता था, क्योंकि इसके बोलने का तरीक़ा विदेशियों की तरह था। लोगों की गर्दन काटते समय उसका वीडियो बनाया जाता और उसको सोशल मीडिया अपलोड कर दिया जाता था, ताक़ि दुनिया भर में इसे देखकर लोग सहमे। यही मक़सद भी था बग़दादी का और इसमें काफ़ी हद तक कामयाब भी रहा बग़दादी। 

इसके बाद बग़दादी के लड़ाकों ने साल 2014 में ही "Japan" के दो नागरिकों का अपहरण कर लिया। जिसमें से एक का नाम "Kenji Goto" तथा दूसरे का नाम "Haruna Yukawa" था। बग़दादी की ओर से जापानी सरकार से इनके बदले 200 मिलियन डॉलर की मांग की गई। लेकिन जापान के Shinzo Abe इसे कूटनीति के तहत कैसे हल किया जाए इसका उपाय करने लगे। क्योंकि यह एक बहुत ही बड़ी रक़म थी और आतंकियों को यह रक़म देना कोई समझदारी भी नहीं थी। इसलिए जापान की ओर से इसे कूटनीति के तहत थोड़ा लंबा खिंचा जाने लगा। लेक़िन, बग़दादी किसी भी मामलें में कोई समझौता नहीं करना चाहता था शायद। वो दुनिया में अपनी क्रूर पहचान बनाए रखना चाहता था, जिसके चलते उसने दोनों जापानी बंधकों की हत्या करवा दी अपने उसी बेरहम मोहम्मद इम्वाज़ी के हाथों। यानी "Jihadi John" के हाथों उन दोनों की गर्दन कटवा दी गयीं। इस वज़ह से दुनिया फ़िर से एक बार सकते में आ गई और दुनिया भर की सरकारों पर दबाव पड़ने लगा कि बग़दादी का ख़ात्मा किया जाए। 

मग़र यह इतना आसान काम नहीं था। उसके लड़ाके आत्मघाती हमलावर थे और बेहद कट्टरवादी सोच वाले भी। सेना के लिए हालाकिं यह कोई बड़ा काम नहीं था, क्योंकि यह काम वायुसेना के माध्य्म से किया जा सकता था। लेकिन बड़ी दिक़्क़त यह थी, कि सीरिया और इराक़ में वो आम नागरिक भी रहते थे जिनका कोई क़सूर नहीं था। इसलिए अमेरिकी सेना ने ज़मीनी कारवाई करने की रणनीति तैयार की। जो बेहद मुश्किल और खतरनाक भी थी। 

अमेरिकी सेना को कुछ हद तक कामयाबी भी मिलनी शुरू हो गई, लेक़िन यह एक लंबी लड़ाई थी। जिसमें इराकी सेना ने भी मदद की। सैनिकों के साथ भी बड़ी निर्दयता से पेश आते थे बग़दादी के लड़ाके और उसके समर्थक। अगर किसी इराक़ी अथवा अमेरिकी सैनिक को मार गिराया जाता था या पकड़ लिया जाता था बग़दादी के लड़ाकों द्वारा, तो उन्हें भी गोली मार दी जाती थी या गर्दन काट दी जाती थी। यहां तक की, उनकी लाशों को बड़ी बेरहमी से गाड़ियों के पीछे बांधकर पूरे इलाक़े में घूमते थे बग़दादी के लड़ाके। कोई इंसानियत नाम की चीज़ उनके अंदर नहीं थी। वहां के स्थानीय लोग भी बग़दादी के डर की वज़ह से उसका समर्थन करते नज़र आते थे। जिसके काफ़ी सारे वीडियो सोशल मीडिया पर देखे गए। 

इसी तरह Jordan के एक वायुसेना पायलट जिनका नाम "Muath al-Kasasbeh" था। उनको 24 दिसंबर 2014 को  उस वक़्त बग़दादी के लड़ाकों ने बंधक बना लिया, जिस दौरान जॉर्डन के F-16 लड़ाकू विमान में कुछ तकनीकी ख़राबी आ गई और वह रक़्क़ा के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया। तकनीकी ख़राबी का पता चलते ही, विमान के पायलट "Mauth al-Kasasbeh" समय पर इजेक्ट कर गए। इसी वक़्त उन्हें बग़दादी के लड़ाकों द्वारा बंधक बना लिया गया था। इसके बाद उन्हें इस तरह मारा जा सकता है, किसी को भी अंदाजा नहीं था। वे बड़े ही भयानक पल थे, जिसमें उनकी हत्या की गई। उसका वीडियो भी बनाया गया और सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया गया। वीडियो को देखकर दुनिया भर के लोग परेशान हो गए, जिसमें दिखाया गया था कि कैसे एक लोहे के पिंजरे में लड़ाकू विमान के इस "Jordanian Pilot Mauth al-Kasasbeh" को बंद कर दिया गया पहले। उसके बाद उनको बंद करके ज़िन्दा "जला" दिया गया!!! पूरी दुनिया सकते में थी यह सब देखकर। इसपर Jordan ने ISIS ठिकानों पर जमकर हमला बोल दिया। जो काफ़ी लंबा ना चल सका।



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महिलाओं और लड़कियों को लेकर काफ़ी बेहरहमी थी बग़दादी और उसके लड़ाकों में। ख़ासतौर पर यज़ीदी, अमेरिकी और विदेशी महिलाओं पर बड़ी हैवानियत बरपाई जाती थी। जिसमें एक नाम अमेरिकी महिला का भी था। यह थीं "Kayla Mueller" इनका पूरा नाम था (Kayla Jean Mueller). Kayla अमेरिका की नागरिक थीं और वह एक "Human Right Activist" के साथ साथ एक "Aide Worker" भी थीं। साल 2013 में उनका अपरहण ISIS ने कर लिया था। वह 26 वर्ष की थीं। उनको तमाम यातनाएं दी गयीं बंधक बनाकर,  उनके साथ लगातार दुष्कर्म किया जाता था और यातनाएं दी जाती थीं। साल 2015 में उनकी मृत्यु हो गई, जिसके बारे में कोई ठोस वज़ह आज तक सामने नहीं आई कि उनकी मौत किन कारणों से हुई। कहा यह भी जाता है कि ISIS पर Jordanian हमलों के चलते किसी हमले में उनकी जान चली गई थी। Kayla Mueller की लाश या उनके कोई भी अवशेष आज तक प्राप्त नहीं हुए। (Kayla के बदले ISIS ने अपनी एक महिला साथी "Aafia Siddiqui" जो कि ख़ुद भी आतंकवादी थी उसकी रिहाई की मांग की थी। इससे पहले "Al Qaida" ने भी उसकी रिहाई की मांग की थी, जब अल कायदा का मुखिया ओसामा बिन लादेन था। लेक़िन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने बग़दादी का यह प्रस्ताव ठुकरा दिया था।)

यह सब वो घटनाएं थी जो बग़दादी के गढ़ यानी उसके अपने इलाक़े "Syria और Iraq" में हुयीं थीं। लेक़िन इसके अलावा भी बग़दादी ने दुनिया भर के और देशों में अपने पैर पसारे हुए थे। जिसमें Britain और America उसके मुख्य निशाने पर थे। (यह कुछ ही बातें और घटनाएं आपको बताई गयीं, जिससे आपको अंदाज़ा हो जाए बग़दादी का और उसके द्वारा की गई हैवनियतों का।) 


अब जानिए, कैसे हुआ अंत बग़दादी का? 


अमेरिकी सेना मज़बूती से अपने सभी और दलों के साथ ISIS के ख़िलाफ़ लड़ रही थी। जिसके चलते साल 2018 के अंत तक ISIS की पकड़ कमज़ोर पड़ने लगी, जिस वज़ह से काफ़ी मोर्चों पर बग़दादी के लड़ाकों को भागना पड़ा और बहुत बड़ी संख्या में उनका ख़ात्मा भी किया गया अमेरिकी और सहयोगी दलों की सेना की मदद से। 
 फ़िर अचानक साल 2019, दिन रविवार 27 अक्टूबर को अमेरिका के राष्ट्रपति "Donald Trump" ने अपने Tweeter Handle से एक Tweet किया। इस ट्वीट ने पूरे अमेरिका के राजनेताओं और लोगों में बेचैनी बढ़ा दी। इतना ही नहीं, बाक़ी देशों में भी इसकी चर्चा मीडिया के माध्य्म से होने लगी। असल में इस ट्वीट में राष्ट्रपति ट्रम्प ने लिखा था, "कुछ बहुत बड़ा घटित हुआ है अभी!" इसके बाद ब्रेकिंग न्यूज़ आनी शुरू हो गई, कि "US Special Forces" के 100 कमांडो ने दुनिया के सबसे बड़े, सबसे कुख्यात, सबसे ज़्यादा वांटेड और सबसे निर्मम हत्यारे बग़दादी को मार गिराया है। 

इस पूरे आपरेशन को उन्हीं "Kayla Jean Mueller" के नाम ऑपरेट किया गया था, जिनका बग़दादी के लड़ाकों ने अपहरण कर लिया था। राष्ट्रपति ट्रम्प ने यह भी बताया कि किस तरह अपने अंतिम समय में बग़दादी रो रहा था और किस तरह स्पेशल फोर्स के प्रशिक्षित खोजी कुत्ते ने उसे पकड़ा। बग़दादी अपनी कुछ बीवीयों और बच्चों को लेकर भाग रहा था, जिसमे वह कामयाब नहीं हो पाया। साथ ही जानकारी के अनुसार यह भी बताया जा रहा है कि उसकी बीवियों ने स्पेशल फोर्स के कमांडो पर गोलियां भी चलायीं, लेकिन उनको कमांडो ने मार गिराया। वहीं दूसरी ओर बग़दादी के बारे में बताया जा रहा है कि उसने अपने 2 - 3 बच्चों सहित अपने आप को बम से उड़ा लिया। 

इस पूरे आपरेशन की जानकारी अमेरिकी संसद के किसी भी विपक्षी दल के नेता को नहीं दी गई थी, जिस वज़ह से काफ़ी आलोचना राष्ट्रपति ट्रम्प की हुई। Nancy Pelosi जो अमेरिकी संसदीय दल की नेता हैं वह भी बाक़ी और सभी आलोचना करने वालों में से एक हैं। 



Baghdadi की मौत पर संदेह क्यों किया जा रहा है? 


असल में काफ़ी देशों के साथ - साथ अमेरिकी नेता और वहां के कुछ लोग यह कह रहे हैं, कि अमेरिका में होने वाले आगामी चुनाव के चलते राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने यह आपरेशन कराया। ताक़ि उनकी वाह वाही वहां की जनता या वहां के लोग करें। कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि राष्ट्रपति ट्रंप कहनी गढ़ रहे हैं। 

वज़ह यह भी है, कि इससे पहले भी अमेरिकी सरकार ने Iraq के तानाशाह शासक "Saddam Hussain" को भी लंबे समय के बाद अपनी स्पेशल फोर्स के माध्य्म से पकड़ा था वर्ष 2003 में। सद्दाम हुसैन को हिरासत में लेने के बाद उसको अमेरिका ले जाया गया और वहां उसको पूरी दुनिया ने देखा। साथ ही जब अमेरिकी अदालत ने उसको मौत की सज़ा सुनाई, तो फांसी देते वक़्त की तस्वीरें और कुछ मिनटों का वीडियो भी पूरी दुनिया को दिखाया गया। यह सब अमेरिका ने इसलिए किया ताक़ि दुनिया देख सके, कि उस तानाशाह को उसके सही अंजाम तक पहुंचा दिया गया है। जिसका वाक़ई में वो ख़ुद भी हक़दार था। उस वक़्त वहां के राष्ट्रपति "George W Bush" थे। 

इसके बाद कुख्यात आतंकी और अल कायदा के  सरगना "ओसामा बिन लादेन" को भी काफ़ी समय के बाद "Pakistan" के "Abbottabad" में एक अमेरिकी सैनिक कार्यवाही के तहत मौत के घाट उतार दिया गया। हालांकि उसको पकड़कर भी लाया जा सकता था, लेकिन स्पेशल फोर्स को अपना भी बचाव करना होता है। और यह एक काफ़ी ख़तरनाक़ मिशन था। जिसे 2 May 2011 को अंजाम दिया गया। इसमें स्पेशल फोर्स के कमांडो ने अपने सिर में लगे हेलमेट में कैमरे लगा रखे थे, जिनके माध्य्म से अमेरिका में बैठे उस समय के राष्ट्रपति और उनके सहयोगी दल के लोग "White House" में इसका पूरा प्रसारण देख रहे थे। ओसामा बिन लादेन के हाथ में बन्दूक़ को देखते ही कमांडो ने उसके एक गोली छाती में और दूसरी गोली ठीक उसके सिर के बीच में मारी। उसके बाद उसकी लाश को अमेरिकी विमान वाहक जहाज़ पर ले जाया गया और वहां उसकी लाश को सेना के अधिकारियों ने पूरी इज़्ज़त के साथ समुद्र के हवाले कर दिया। इन सबकी वीडियो क्लिप और तस्वीरें भी दुनिया के साथ साझा की गयीं। ताक़ि सबको यक़ीन हो जाये। 

इन्हीं बातों को देखते हुए पूरी दुनिया के लोग बग़दादी की मौत पर यक़ीन नहीं कर पा रहे। लेक़िन ट्रंप भी शायद अपनी फ़जीहत नहीं कराना चाहेंगे, क्योंकि चुनाव सर पर हैं। क्योंकि यह ऐलान करना कि बग़दादी को मार दिया गया है और कहीं बग़दादी अपनी वीडियो जारी कर देता यह देखकर या सुनकर तो क्या इज़्ज़त रह जाती ट्रंप सरकार की। इसलिए यह बात ग़लत नहीं लगती "यानी बग़दादी की मौत की ख़बर।" 

हालांकि बग़दादी की मौत की पुष्टि "ISIS" संगठन के दूसरे आतंकियों ने कर दी है, अमेरिका को धमकी देते हुए कुछ इस तरह से, कि "अमेरिका को ज़्यादा ख़ुश होने की ज़रूरत नहीं है, हम अपना यह अभियान जारी रखेंगे। (यानी इस्लाम को दुनिया भर में क़ायम करना और दुनिया भर के सभी देशों को शरिया कानून के तहत बनाना।) इसी के चलते ISIS Central Media ने अपनी शाखा "al-Furqan Foundation" से एक ऑडियो जारी किया 31 अक्टूबर 2019 को, कि हमने अपना नया लीडर "Abu Ibrahim al-Hashimi al-Qurayshi" को चुन लिया है! 


रही यह बात कि "ट्रंप ने बग़दादी के ऊपर होने वाली इस रैड की बात किसी को भी क्यों नहीं बताई?" तो…



उसपर मेरा अपना ख़ुद का मानना यह है कि, क्योंकि "Abu Bakr al-Baghdadi" अबतक का सबसे बड़ा और ख़तरनाक़ अपराधी और आतंकी संगठन का मुखिया था व उसको भी ढूंढने में काफ़ी समय और पैसा ख़र्च हुआ, साथ ही पता नहीं कितने निर्दोष लोगों और अमेरिकी सैनिकों की जानें भी गयीं उसका पता लगाने के दौरान। इतने लंबे समय में। इसलिए हो सकता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने इस आपरेशन को गोपनीय रखना ज़्यादा ठीक समझा। क्योंकि अगर किसी विपक्षी दल के नेता या व्यक्ति ने इस आपरेशन की गोपनीयता लीक करदी होती, तो बहुत हद तक संभव था कि बग़दादी इस बार भी पकड़ में नहीं आता! 

भले ही अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने यह आपरेशन इसलिए कराया हो, ताक़ि उनकी पकड़ अच्छी हो जाए अमेरिकी लोगों में आगामी चुनाव को देखते हुए। लेक़िन दुनिया के हर व्यक्ति को ख़ुशी होनी चाहिए अगर वह इंसानियत में और शांति में यक़ीन रखता हो तो, कि यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है सबके लिए। क्योंकि Syria, Iraq और उसके आसपास के सभी शहर और इलाक़े के लोग 1970 के दशक से बहुत बड़ी कीमित चुकाते हुए आ रहे हैं। अगर कहा जाए कि दुनिया का सबसे ज़्यादा अविकसित और तनावपूर्ण भरा अगर कोई देश, शहर और इलाक़ा इराक और सीरिया है, तो शायद ग़लत नहीं होगा यह कहना। सबसे पहले 1970 के समय से 2003 तक वहां के लोगों पर अत्याचार "Saddam Hussain" ने किया। फ़िर उसके बाद "Osama Bin Laden" ने किया। और अबतक 2010 से "Baghdadi" ने किया! लगातार 50 सालों से लगभग वहां के लोग तकलीफें झेल रहे हैं, उनकी बड़ी ही निर्ममता से जानें लीं जा रहीं हैं और महिलाओं की इज़्ज़तों से खेला जा रहा है। इसलिए लोगों को शुक्र अदा करना चाहिए, कि बग़दादी को मार दिया गया है। 

जैसा कि आपने अभी ऊपर पढ़ा, कि "ISIS" ने "Sheikh Abu Bakr al-Baghdadi" की मौत के बाद संगठन ने अपना नया नेता चुन लिया है (Abu Ibrahim al-Hashimi al-Qurayshi) को। तो यह कहना ग़लत नहीं होगा, कि अमेरिका के साथ - साथ दुनिया के सभी नेताओं को इस मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं करना चाहिए और इस नए नेता के साथ - साथ पूरे "ISIS" संगठन को ख़त्म करने की कोशिशें करनी चाहिए। क्योंकि नेता तो भारी - भरकम सुरक्षा व्यवस्था के साथ चलते हैं, लेकिन निर्दोष और मासूम लोग मारे जाते हैं इन आतंकियों के हाथों!