Friday, February 28, 2020

भारत के न्यूज़ चैनलों की नज़र में, आम भारतीय की कितनी पूछ?

जब 'Coronavirus' ने चीन के वुहान शहर में अपने पसारने शुरू किए थे, उस समय शायद ही भारत की 'Main Stream Media' ने उसके बारे में कोई पब्लिकेशन किया हो। कुछ - एक ही होंगे भारत में, जिन्होंने इस ख़तरनाक़ वायरस की ख़बर को प्राथमिकता दी होगी।

फ़िलहाल... मैंने नहीं देखा किसी को भारत में। लेक़िन जैसे ही मुझे ख़बर मिली, कि चीन के वुहान में 17 लोग इस वायरस की वज़ह से मारे गए हैं और तक़रीबन 200 - 300 लोग संक्रमित हो चुके हैं, तो मैंने फ़ौरन बिना देर किए एक 'Short Article' लिखकर पब्लिश कर दिया। (जिसे आप यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं।)

मैं उस पूरे दिन व उस पूरी रात इंतज़ार करता रहा, कि भारत की बड़ी न्यूज़ एजेंसियां इस ख़बर को दिखाएं और फ़िर मैं भी सो जाऊ कुछ देर के लिए। लेक़िन कोई न्यूज़ नहीं आयी सामने। असल में, मैं चाहता था कि किसी सूरत से लोगों को पता चले जल्द से जल्द, ताक़ि यहां भारत से और देशों में व चीन में जाने से लोग बच सकें।

एक दिन हुआ, दो दिन हुए, चार दिन हुए, लेक़िन कोई ख़बर नहीं। वहीं दूसरी तरफ मेरी घबराहट के साथ - साथ, चीन के वुहान में मरने वाले लोगों की गिनती बढ़ती जा रही थी। मगर भारत में दिल्ली के विधानसभा चुनाव ज़रूरी थे। नेताओं, पार्टियों और न्यूज़ चैनलों के लिए, जो 8 फ़रवरी 2020 को होने थे। आपको बता दूं, कि चीन से पहली ख़बर अंतरराष्ट्रीय मीडिया में 21 जनवरी या 22 जनवरी 2020 को आई थी।

यहां चुनाव की चर्चाएं चलतीं रहीं और उधर चीन में मरने वालों की गिनती भी। ना सरकार को चिंता थी और नाहीं मीडिया को! जब चुनाव निपट गए, तो पहली ख़बर भारत की मीडिया में देखने को मिली 13 या 14 फ़रवरी 2020 को। उस ख़बर में भी मीडिया के पास बिल्कुल ताज़ा आंकड़े नहीं थे, क्योंकि जिस दिन मीडिया ने इस ख़बर को दिखाया था, उस दिन उन्होंने बताया कि "चीन में मरने वाले लोगों की संख्या 1322 हो गयी है!" जबकि असल संख्या थी 1376!

अब आप ही सोचिए, कि जिस वायरस को लेकर (WHO) बेहद परेशान हो और दुनिया भर के देश भी। क्या वह ख़बर चिंताजनक नहीं थी? क्या मीडिया को इस ख़बर को पहले ही नहीं दिखाना या बताना चाहिए था, ताक़ि लोगों इस वायरस का पता चलता और वह अपना बचाव शुरू करते? लेक़िन मीडिया ने ऐसा नहीं किया और लगे रहे नेताओं व पार्टियों के चुनाव प्रचार में! कोई डिबेट्स नहीं कीं इस वायरस को लेकर, कि इससे कैसे बचें और क्या करें लोग ऐसा जिससे वे इस वायरस की चपेट में ना आएं।


कमाल की बात तो यह रही, कि भारत अभी वायरस की चपेट में नहीं आया है। जिस तरह साउथ कोरिया, यूरोप के कुछ देश व शहर और इटली, ईरान आदि आ चुके हैं। आज इसी बात की गंभीरता को देखते हुए, (WHO) के बाद अमेरिकी देश की इंटेलिजेंस एजेंसीज की एक रिपोर्ट सामने आई है। जिसमें लिखा है, कि "अगर 'Coronavirus' भारत में ज़रा सा भी फ़ैला, तो भारत इस वायरस से कैसे निपटेगा?" (न्यूज़ रिपोर्ट, ऊपर स्क्रीनशॉट में देखें।)

यानी यह एक साफ़ संकेत है इस बात का, कि WHO और अमेरिका यह कह रहे हैं, कि भारत इस काबिल नहीं है, जो वायरस से निपट पाए अगर वायरस फ़ैला तो। जिस तरह विकसित देश इसपर लगाम लगाए हुए हैं और इस वायरस के मामलों से निपटने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं।

(आपको यह भी बता दें, कि अभी इस वायरस की कोई वैक्सीन ईजाद नहीं हो पाई है और (WHO) का कहना है, कि वैक्सीन को ईजाद करने में अभी तक़रीबन 18 महीने लग सकते हैं, और वो भी एक महज़ टेस्ट सैंपल होगा।)

Thursday, February 20, 2020

अभी और कितना समय बर्बाद होगा देश का, इतिहास की बातों को लेकर?

File Photo:B-24D's fly over Polesti during World War II | Image Credit: Wikimedia Commons
आप सभी इस बात को जानते होंगे, कि 'Second World War' 1939 से 1945 तक चला, जिसमें दुनिया के कुछ ऐसे देश शामिल थे, जिन्हें आज दुनिया की महाशक्तियों में गिना जाता है। चाहें बात अर्थव्यवस्था की हो या सैन्य शक्ति की, यह देश आज जिस मुक़ाम पर हैं वह अपने आप में काफ़ी सहरानीय और प्रेरणादायक बात है। इन देशों का नाम है: जर्मनी, ग्रेट ब्रिटेन, यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका, रूस, चीन, जापान, इटली, फ्रांस आदि।

आज उस दूसरे विश्व युद्ध को ख़त्म हुए लगभग 75 साल हो चुके हैं। भारत को भी लगभग इतना ही समय हो चुका है आज़ाद हुए। साथ ही, एक देश जो हमारे ही देश का हिस्सा था यानी पाकिस्तान, उसे भी इतना ही समय हो चुका है भारत से अलग हुए। लेक़िन इन दोनों देशों ने इन बीते हुए लगभग 75 सालों में क्या हासिल किया? क्या आज भारत उन्हीं देशों की तरह आर्थिक रूप से मज़बूत है? क्या आज भारत किसी मामले में इन देशों से आगे है? जवाब है, नहीं!

तो क्यों है ऐसा? जवाब है, क्योंकि हमारे देश ने कभी हिन्दू - मुसलमान से निकलकर किसी और दूसरे ज़रूरी मुद्दे पर बात ही नहीं की, और कमाल की बात तो यह है, कि आज लगभग 75 सालों बाद भी हम उसी हिन्दू - मुसलमान के मामले में उलझे हुए हैं। नफ़रत को कुछ इस तरह दिलों में जगह दे रखी है यहां के लोगों ने, जैसे नफ़रत ना हो कोई मेहबूबा हो! हिन्दू कहता है, कि मुसलमान ने देश के बटवारे के समय हम हिंदुओ को मारा और मुसलमान कहता है, कि हिंदुओं ने हमे मारा। इस बात की लड़ाई आज भी जारी है!

लेक़िन ना हिन्दू सोचता है इस बात को और नाहीं मुसलमान, कि बटवारे के समय हिन्दू भी मारा गया था और मुसलमान भी। वहीं दूसरी ओर जिन देशों ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अपने - अपने लाखों लोग खोए, उन्होंने भारत के लोगों की तरह नहीं सोचा। उन्होंने वही सोचा जो देश को अमन के और तरक्की के रास्ते पर लेकर जा सकता था यानी उन्होंने यह सोचा कि लोग दोनों तरफ़ के लाखों की तादाद में मारे गए हैं व अगर हमारे दुश्मनों ने हमारे अपने मारे हैं, तो हमने भी तो उनके अपने छीने हैं। बस यही सोच कर वह देश आगे बढ़ गए और आज उस मुक़ाम पर हैं, जिसकी कल्पना भारत तो कर ही नहीं सकता।

आज अगर अमेरिका के डॉलर की बात करें, तो उस एक अमरीकी डॉलर को ख़रीदने के लिए आपको लगभग 70 रुपये देने होंगे। आज अगर यूरो की बात करें, तो आज एक यूरो को ख़रीदने के लिए आपको लगभग 80 रुपये देने होंगे। जबकि आज़ादी के समय हमारे रुपये की वैल्यू भी अमरीकी डॉलर के बराबर थी। जबकि हमारा देश दूसरे विश्व युद्ध में शामिल ही नहीं था। लेक़िन जिन देशों की बात हमने आपको बताई, यानी अमेरिका और जर्मनी वगैराह। यह देश पूरी तरह से ख़त्म व बर्बाद हो चुके थे दूसरे विश्व युद्ध में!

आज के माहौल को देखकर लगता है, कि भारत की स्थिति आने वाले 10 सालों में भी उन देशों के बराबर नहीं हो पाएगी, जिनके बारे में अभी आपने ऊपर पढ़ा। लगता है, जैसे हम भारत के लोगों को 'आज़ादी' रास नहीं आयी! अगर आज भी हमने अपनी सोचों को नहीं बदला, तो इसकी बहुत ही बड़ी क़ीमत हमारी आने वाली पीढ़ियों को चुकानी पड़ेगी!

AIMIM के नेता 'Waris Pathan' ने दिया भाजपाई नेताओं की तरह विवादित बयान।

A poster hangs at Shaheen Bagh. Photo: Pawanjot Kaur
जैसा कि आप ही जानते होंगे, कि शाहीन बाग का धरना प्रदर्शन पंद्रह (15) दिसंबर को शुरू हुआ था और यह धरना प्रदर्शन आज भी जारी है और आप यह भी जानते होंगे, कि यह धरना प्रदर्शन CAA के विरोध में किया जा रहा है। क़रीब दो महीनों से चल रहे इस प्रदर्शन को मुख्यता शाहीन बाग की महिलाएं चला रहीं हैं। साथ ही इस धरने प्रदर्शन में कई और समुदाय यानी धर्मों के लोग भी शाहीन बाग की महिलाओं व लोगों का पूरा साथ दे रहें हैं। चाहें वे लोग हिन्दू समुदाय से हों या सिख समुदाय से, लगभग सभी धर्मों के लोग इस प्रदर्शन में साथ देखे जा सकते हैं। यही बात इस लोकतांत्रिक रूप से किये जा रहे धरने प्रदर्शन को और मज़बूत बनाती है।


AASU supporters raise slogans during their Gana Saityagrah protest against Citizenship Amendment Act in Guwahati Dec. 16 2019. (Photo | PTI)
आपको हम इस बात से भी अवगत करा दें, कि सबसे पहले यह विरोध प्रदर्शन असम में शुरू हुए थे। जिन्होंने वहां काफ़ी तनाव की स्थिति पैदा कर दी थी और उस तनावपूर्ण स्थिति के चलते कई नागरिकों को विरोध प्रदर्शन के दौरान अपनी जान गवानी पड़ी। जिसके बाद इसकी आंच से ना सिर्फ़ दिल्ली जली, बल्कि असम की इस आंच ने पूरे देश को झुलसा दिया। सबसे ज़्यादा मौतें पुलिस लाठीचार्ज और गोलियों की वजह से उत्तर प्रदेश में हुयीं।

न्यूज़ चैनलों पर रोज़ इस पर डिबेट्स हो रहीं थीं। सभी पार्टियों के प्रवक्ता न्यूज़ चैनलों पर आपस में ख़ूब चीख़ने - चिल्लाने लगे, जो आज भी जारी है। कई दिनों से चल रहे इस शाहीनबाग़ के विरोध प्रदर्शन की वजह से वहीं के कुछ स्थानीय लोगों ने और दिल्ली के बाक़ी कुछ लोगों ने, सुप्रीम कोर्ट में इस बात की याचिका दाख़िल की व सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई, कि जिस रास्ते पर यह विरोध प्रदर्शन चल रहा है, उसके बंद होने की वजह से काफ़ी दिक़्क़तों का सामना करना पड़ रहा है, इसलिए तत्काल प्रभाव से उस रोड को ख़ाली करने का निर्देश दिया जाए।

लेक़िन माननीय सुप्रीम कोर्ट ने यह कह दिया पहले, कि "भारत एक लोकतांत्रिक देश है और इसके चलते देश के हर नागरिक को पूरा अधिकार है विरोध प्रदर्शन करने का। इसलिए हम अपनी ओर से कोई निर्देश नहीं दे सकते। लेकिन केंद्र सरकार कोई उचित कदम उठाते हुए शाहीन बाग को ख़ाली कराने की कोशिश करे व केंद्र सरकार इसके लिए पूरी तरह आज़ाद है।" साथ ही न्यायालय ने यह भी साफ़ कर दिया था, कि विरोध प्रदर्शन करना देश के हर नागरिक का संवैधानिक अधिकार है, लेक़िन लोगों को यह भी ध्यान रखना होगा, कि उनके प्रदर्शन से किसी को कोई दिक़्क़त ना हो।


Sanjay Hegde & Sadhana Ramachandran is at Shaheen Bagh Protest Dec 19, 2020 | Image Credit: ANI
लेक़िन माननीय न्यायालय के कहने के बाद भी, केंद्र सरकार ने कोई भी पार्टी नेता या अपनी ओर से कोई भी पक्षकार नहीं भेजा, जो शाहीनबाग़ की महिलाओं से बातचीत कर पाता और इस मामले का कोई हल निकलता। जिसके चलते कल दिनांक उन्नीस (19) फ़रवरी 2020 को सुप्रीम कोर्ट की ओर से कुछ लोगों को भेजा गया, जिसमे एक मुख्य नाम संजय हेगड़े का था। लेक़िन काफी बातचीत के बाद भी कोई हल, कल नहीं निकल सका।

मगर सबसे बड़ी बात जो सामने आई, वो यह, कि किसी भी पार्टी का मुख्य नेता शाहीन बाग़ नहीं गया। बस सभी नेता और उनकी पार्टी के प्रवक्ता न्यूज़ चैनलों की डिबेट्स तक ही सीमित दिखे और आज भी वही हाल है। बस कुछ दिखा तो विरोध। केंद्र सरकार यानी भाजपा के नेता व प्रवक्ता न्यूज़ चैनलों पर शाहीन बाग़ के लोगों का विरोध करते दिखे और विपक्षी दलों के नेता व प्रवक्ता केंद्र सरकार यानी भाजपा का विरोध करते दिखे। इसे आम भाषा में राजनीति और अपना राजनीतिक स्वार्थ कहा जाता है, जिसे आज देश का हर नागरिक महसूस कर रहा होगा।

जब भी किसी पार्टी के बड़े नेता या प्रवक्ता से यह पूछा जाता था, कि "आप लोग क्यों नहीं जाते शाहीन बाग़ के लोगों व महिलाओं से मिलने और उनसे बातचीत करने?" तो इन पार्टी नेताओं व प्रवक्ताओं के पास बात को घुमाने के सिवाए और कुछ नहीं होता था। क्योंकि यह वोटों की राजनीति में लगे हुए थे और आज भी वही कर रहे हैं। ऐसा यह लोग अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए शायद दिल्ली विधानसभा चुनाव के कारण कर रहे थे। अब भी यह जारी है, क्योंकि इस वर्ष के आख़री महीनों में बिहार के चुनाव होने वाले हैं। यह सभी नेता व पार्टी प्रवक्ता शाहीनबाग़ के विरोध प्रदर्शन को सिर्फ़ एक चुनावी फ़ायदे के तरह देख रहे थे।


AIMIM spokesperson Waris Pathan. (ANI)
यह सभी बातें हमने आपको पहले इसलिए बताई, क्योंकि यह ज़रूरी था आपके लिए समझना, कि विरोध प्रदर्शन कब से शुरू हुए और किस - किस धर्म के लोग आज शाहीन बाग़ में बैठे हैं। असल में, आज AIMIM के नेता 'Waris Pathan' ने बड़ा ही विवादित बयान दे डाला। उन्होंने यह बयान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के उस विवादित बयान पर दिया, जिसमें योगी आदित्यनाथ ने यह कहा था, कि "शाहीनबाग़ के विरोध प्रदर्शन में मुस्लिम महिलाओं को मुस्लिम समाज के मर्दों ने आगे कर दिया है और ख़ुद घर में कंबल डालकर सो रहे हैं।" योगी आदित्यनाथ के बयान को लेकर आज वारिस पठान ने कहा, कि "अभी तो शाहीन बाग़ की सिर्फ़ शेरनियां बहार निकली हैं तो सरकार का यह हाल है। अगर कहीं मर्द भी बाहर निकल आये, तो सोचो क्या होगा। हम पंद्रह (15) करोड़ ज़रूर हैं, लेक़िन सौ (100) करोड़ पर भारी हैं!"

वारिस पठान के इस बयान से दो बातें सामने आ रही हैं। एक, कि वे यह दिखा रहे हैं कि वे मुस्लिम समुदाय के लोगों के ठेकेदार हैं। जबकि वारिस पठान यह भूल गए कि उन्होंने दूसरे धर्मों के लोगों को बेइज़्ज़त कर डाला है अपनी इस बात से। क्योंकि वहां (शाहीन बाग़) सिर्फ़ मुस्लिम समुदाय की महिलाएं ही नहीं हैं जो प्रदर्शन कर रही हैं, बल्कि वहां बाक़ी सभी धर्मों की महिलाएं व मर्द भी शामिल हैं उस प्रदर्शन में। वारिस पठान ने ठीक वही किया, जो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व भाजपा के अन्य नेताओं ने किया था।

योगी आदित्यनाथ भी हिन्दू समुदाय के वोटों को अपनी पार्टी के लिए मज़बूत करना चाह रहे थे, दिल्ली के विधानसभा चुनाव के चलते और यही वारिस पठान ने आज किया। योगी आदित्यनाथ के बयान से कितना नुकसान हुआ भाजपा को दिल्ली चुनाव में यह पूरा देश जानता है और यही ग़लती वारिस पठान कर रहे हैं। शायद वह जानते हुए भी यह बेवकूफ़ी कर रहे हैं, कि भाजपा को कितना नुकसान हुआ दिल्ली में। जबकि दिल्ली में अगर समुदाय के तौर पर नागरिकों को देखा जाए, तो हिन्दू समुदाय के लोग ज़्यादा हैं। फ़िर भी ग़लत बयानबाज़ी के चलते भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा। अब अगर वारिस पठान भी या कोई और पार्टी भी भाजपाई नेताओं की तरह बयानबाज़ी करेगी, तो उसे राजनीतिक तौर पर चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ सकता है। चाहें वारिस पठान को पूरा मुस्लिम समुदाय वोट देकर जिताते, लेक़िन होगा नुक़सान ही!!!

आपको इस ब्लॉग के माध्य्म से यह बताने की कोशिश की हमने, कि कोई भी नेता किसी भी धर्म के नागरिक का आजकी तारीख़ में तो भला करता हुआ नहीं दिख रहा है। सिर्फ़ वोटों की राजनीति की जा रही है और देश के लोगों को महज़ एक वोट समझा जा रहा है, इंसान नहीं!

कमाल की बात तो यह है, कि इतने दिनों से शाहीनबाग़ पर जब नेताओं से बोलने के लिए कहा गया तो कोई नहीं बोला। लेक़िन दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद जैसे ही भाजपा, विपक्षी दलों को कमज़ोर होती हुई दिखी, विपक्षी दलों के नेताओं ने अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकनी शुरू कर दीं! बस फ़र्क़ इतना ही है, कि जब भाजपा अपने आपको अहंकार में मज़बूत समझ रही थी, तो भाजपा नेताओं ने मुस्लिम समुदाय के लोगों को निशाना बनाया। अब जब विपक्षी दल अपने आपको मज़बूत स्थिति महसूस कर रहे हैं, तो विपक्षी दल हिन्दू समुदाय को कोस रहे हैं।

"नेताओं की राजनीति को जब तक देश के लोग नहीं समझेंगे, तब तक भारत विकसित देशों की गिनती में आना तो दूर, विकसित देश बनने की कल्पना भी नहीं कर सकता!" 

Wednesday, February 19, 2020

कितने सच और कितनी दीवारें?

(Image/File Photo, Credit: NDTV)
बीते कई महीनों से या कहिए कि नोटबंदी के कुछ ही महीनों के बाद से, केंद्र सरकार यानी नरेंद्र मोदी सरकार देश में आर्थिक मंदी का कारण यह बता रही थी, कि "देश में आर्थिक मंदी का कारण केंद्र सरकार या नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियां नहीं हैं, बल्कि दुनिया भर के देशों में इस वक़्त आर्थिक मंदी है। जिसकी वजह से भारत को भी आर्थिक मंदी का सामना करना पड़ रहा है।

जबकि हक़ीक़त यह है, कि दुनिया भर के सभी देशों में सब कुछ सामान्य था। किसी तरह की कोई ख़बर कहीं से भी और किसी भी देश से नहीं आ रही थी, कि कोई देश आर्थिक रूप से किसी समस्या का सामना कर रहा है। ख़ासतौर पर वो देश, जो विकसित देशों की गिनती में आते हैं। जैसा: जापान, अमेरिका, चीन, जर्मनी आदि।

लेक़िन आज, चीन के 'Coronavirus' की वजह से दुनिया भर के देशों में अर्थव्यवस्था को लेकर सभी विकसित देशों को चिंतित होता हुआ देखा जा सकता है। अमेरिका की स्मार्टफोन बनाने वाली व दुनिया की कुछ सबसे बड़ी कंपनियों में से एक 'APPLE' कंपनी को चीन के 'Coronavirus' की वजह से काफ़ी नुक़सान हो रहा है। इसी तरह दुनिया भर के और देशों की अर्थव्यवस्था पर भी बहुत बुरा असर पड़ता हुआ दिख रहा है।

वायरस चीन में होने की वजह से, सबसे ज़्यादा नुक़सान ख़ुद चीन को हो रहा है। चीन को इस वायरस की वजह से, जो लोगों में फ़ैलता ही जा रहा है, उसकी वजह से अपने ही देश की तमाम छोटी - बड़ी फैक्टरियां बंद कर देनी पड़ी हैं।

आपको बता दें, कि अब तक यह वायरस सिर्फ़ दो (2) महीनों में अकेले चीन में ही लगभग दो हज़ार (2,000) लोगों की जानें ले चुका है और अन्य साठ हजार (60,000) के क़रीब लोगों को संक्रमित कर चुका है।

आज इस वायरस की वजह से दुनिया भर में लोगों को अपनी ज़िन्दगी का डर तो है ही, साथ ही, उनको इस वायरस से इस बात का भी डर है कि कहीं यह वायरस दुनिया भर के देशों की अर्थव्यवस्था को ही ना बिगड़ दे! यानी चिंता अब होनी शुरू हो गयी है, जो पूरी तरह से जायज़ भी है!

लेक़िन जिस मंदी का भारत के लोगों को बताया जा रहा था केंद्र सरकार यानी नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से, वो भी पिछले दो - तीन वर्षों से, वह क्या एक काल्पनिक मंदी थी? क्या भारत के लोगों को मूर्ख बनाया जा रहा था?

ख़ैर... वो समय निकल चुका है और लोकसभा चुनाव व दिल्ली चुनाव भी। लेक़िन अब क्या जवाब देंगे प्रधानमंत्री बिहार चुनाव के समय, जो इस वर्ष के आख़री महीनों में हैं? क्योंकि 'Coronavirus' से दुनिया भर में शुरू हो चुकी आर्थिक मंदी का बहुत बड़ा और बुरा असर भारत पर भी पड़ेगा! जिसे छुपा पाना किसी देश के बस में नहीं है।

तो क्या करेंगे अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी? कैसे संतुलित कर पाएंगे, इस असंतुलित देश की व्यवस्था और अर्थव्यवस्था को?