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A poster hangs at Shaheen Bagh. Photo: Pawanjot Kaur |
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AASU supporters raise slogans during their Gana Saityagrah protest against Citizenship Amendment Act in Guwahati Dec. 16 2019. (Photo | PTI) |
न्यूज़ चैनलों पर रोज़ इस पर डिबेट्स हो रहीं थीं। सभी पार्टियों के प्रवक्ता न्यूज़ चैनलों पर आपस में ख़ूब चीख़ने - चिल्लाने लगे, जो आज भी जारी है। कई दिनों से चल रहे इस शाहीनबाग़ के विरोध प्रदर्शन की वजह से वहीं के कुछ स्थानीय लोगों ने और दिल्ली के बाक़ी कुछ लोगों ने, सुप्रीम कोर्ट में इस बात की याचिका दाख़िल की व सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई, कि जिस रास्ते पर यह विरोध प्रदर्शन चल रहा है, उसके बंद होने की वजह से काफ़ी दिक़्क़तों का सामना करना पड़ रहा है, इसलिए तत्काल प्रभाव से उस रोड को ख़ाली करने का निर्देश दिया जाए।
लेक़िन माननीय सुप्रीम कोर्ट ने यह कह दिया पहले, कि "भारत एक लोकतांत्रिक देश है और इसके चलते देश के हर नागरिक को पूरा अधिकार है विरोध प्रदर्शन करने का। इसलिए हम अपनी ओर से कोई निर्देश नहीं दे सकते। लेकिन केंद्र सरकार कोई उचित कदम उठाते हुए शाहीन बाग को ख़ाली कराने की कोशिश करे व केंद्र सरकार इसके लिए पूरी तरह आज़ाद है।" साथ ही न्यायालय ने यह भी साफ़ कर दिया था, कि विरोध प्रदर्शन करना देश के हर नागरिक का संवैधानिक अधिकार है, लेक़िन लोगों को यह भी ध्यान रखना होगा, कि उनके प्रदर्शन से किसी को कोई दिक़्क़त ना हो।
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Sanjay Hegde & Sadhana Ramachandran is at Shaheen Bagh Protest Dec 19, 2020 | Image Credit: ANI |
मगर सबसे बड़ी बात जो सामने आई, वो यह, कि किसी भी पार्टी का मुख्य नेता शाहीन बाग़ नहीं गया। बस सभी नेता और उनकी पार्टी के प्रवक्ता न्यूज़ चैनलों की डिबेट्स तक ही सीमित दिखे और आज भी वही हाल है। बस कुछ दिखा तो विरोध। केंद्र सरकार यानी भाजपा के नेता व प्रवक्ता न्यूज़ चैनलों पर शाहीन बाग़ के लोगों का विरोध करते दिखे और विपक्षी दलों के नेता व प्रवक्ता केंद्र सरकार यानी भाजपा का विरोध करते दिखे। इसे आम भाषा में राजनीति और अपना राजनीतिक स्वार्थ कहा जाता है, जिसे आज देश का हर नागरिक महसूस कर रहा होगा।
जब भी किसी पार्टी के बड़े नेता या प्रवक्ता से यह पूछा जाता था, कि "आप लोग क्यों नहीं जाते शाहीन बाग़ के लोगों व महिलाओं से मिलने और उनसे बातचीत करने?" तो इन पार्टी नेताओं व प्रवक्ताओं के पास बात को घुमाने के सिवाए और कुछ नहीं होता था। क्योंकि यह वोटों की राजनीति में लगे हुए थे और आज भी वही कर रहे हैं। ऐसा यह लोग अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए शायद दिल्ली विधानसभा चुनाव के कारण कर रहे थे। अब भी यह जारी है, क्योंकि इस वर्ष के आख़री महीनों में बिहार के चुनाव होने वाले हैं। यह सभी नेता व पार्टी प्रवक्ता शाहीनबाग़ के विरोध प्रदर्शन को सिर्फ़ एक चुनावी फ़ायदे के तरह देख रहे थे।
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AIMIM spokesperson Waris Pathan. (ANI) |
वारिस पठान के इस बयान से दो बातें सामने आ रही हैं। एक, कि वे यह दिखा रहे हैं कि वे मुस्लिम समुदाय के लोगों के ठेकेदार हैं। जबकि वारिस पठान यह भूल गए कि उन्होंने दूसरे धर्मों के लोगों को बेइज़्ज़त कर डाला है अपनी इस बात से। क्योंकि वहां (शाहीन बाग़) सिर्फ़ मुस्लिम समुदाय की महिलाएं ही नहीं हैं जो प्रदर्शन कर रही हैं, बल्कि वहां बाक़ी सभी धर्मों की महिलाएं व मर्द भी शामिल हैं उस प्रदर्शन में। वारिस पठान ने ठीक वही किया, जो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व भाजपा के अन्य नेताओं ने किया था।
योगी आदित्यनाथ भी हिन्दू समुदाय के वोटों को अपनी पार्टी के लिए मज़बूत करना चाह रहे थे, दिल्ली के विधानसभा चुनाव के चलते और यही वारिस पठान ने आज किया। योगी आदित्यनाथ के बयान से कितना नुकसान हुआ भाजपा को दिल्ली चुनाव में यह पूरा देश जानता है और यही ग़लती वारिस पठान कर रहे हैं। शायद वह जानते हुए भी यह बेवकूफ़ी कर रहे हैं, कि भाजपा को कितना नुकसान हुआ दिल्ली में। जबकि दिल्ली में अगर समुदाय के तौर पर नागरिकों को देखा जाए, तो हिन्दू समुदाय के लोग ज़्यादा हैं। फ़िर भी ग़लत बयानबाज़ी के चलते भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा। अब अगर वारिस पठान भी या कोई और पार्टी भी भाजपाई नेताओं की तरह बयानबाज़ी करेगी, तो उसे राजनीतिक तौर पर चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ सकता है। चाहें वारिस पठान को पूरा मुस्लिम समुदाय वोट देकर जिताते, लेक़िन होगा नुक़सान ही!!!
आपको इस ब्लॉग के माध्य्म से यह बताने की कोशिश की हमने, कि कोई भी नेता किसी भी धर्म के नागरिक का आजकी तारीख़ में तो भला करता हुआ नहीं दिख रहा है। सिर्फ़ वोटों की राजनीति की जा रही है और देश के लोगों को महज़ एक वोट समझा जा रहा है, इंसान नहीं!
कमाल की बात तो यह है, कि इतने दिनों से शाहीनबाग़ पर जब नेताओं से बोलने के लिए कहा गया तो कोई नहीं बोला। लेक़िन दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद जैसे ही भाजपा, विपक्षी दलों को कमज़ोर होती हुई दिखी, विपक्षी दलों के नेताओं ने अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकनी शुरू कर दीं! बस फ़र्क़ इतना ही है, कि जब भाजपा अपने आपको अहंकार में मज़बूत समझ रही थी, तो भाजपा नेताओं ने मुस्लिम समुदाय के लोगों को निशाना बनाया। अब जब विपक्षी दल अपने आपको मज़बूत स्थिति महसूस कर रहे हैं, तो विपक्षी दल हिन्दू समुदाय को कोस रहे हैं।
"नेताओं की राजनीति को जब तक देश के लोग नहीं समझेंगे, तब तक भारत विकसित देशों की गिनती में आना तो दूर, विकसित देश बनने की कल्पना भी नहीं कर सकता!"
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